पलामूः गुजरे वक्त में जिसकी शान राजशाही से हुआ करती थी. लेकिन गुजरे वक्त के साथ शान में गुस्ताखी होती गई. पलामू के चेहरे पर वक्त के थपेड़ों के साथ बदनुमा दाग भी लगता गया. कभी नक्सलियों की धमक से यहां की धरती कांप गई, कभी जमीनी अदावत में खून बहे. दुस्साहस की बानगी ऐसी कि यहां बचपन का अतिक्रमण हो रहा है. 90 का दशक देशभर में बंधुआ मजदूरी के लिए पलामू चर्चा में रहा. अब यह इलाका बाल मजदूरों का बड़ा केंद्र बन गया है, बाल तस्करी का एक बड़ा अड्डा बन गया है.
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पलामू के बिहार से सटे सीमावर्ती इलाकों से बड़ी संख्या में बच्चों का बाहर के राज्यों में सौदा किया जा रहा है. बच्चों को दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, यूपी समेत कई राज्यों में भेजा जा रहा है. पलामू का मनातू, चैनपुर, तरहसी, पिपराटांड़, पांकी के इलाके में यह गिरोह सक्रिय है. बिहार का ये बाल तस्कर गिरोह का एक बड़ा नेटवर्क यहां काम कर रहा है. इसके कई एजेंट बच्चों के मन पर प्रहार कर, उन्हें बरगलाकर, अपनी चिपनी-चुपड़ी बातों से उन्हें झांसे में लेते हैं. बात यहां भी नहीं बनी तो परिजनों को एक मोटी रकम का लालच देकर उनसे उनके बच्चों का सौदा कर लेते हैं. गरीब और लाचार परिजन भी आखिर क्या करे, मुट्ठीभर पैसों की चाहत में वो अपने बच्चों को मजदूरी आग में झोंक देते हैं.
एक साल में 25 से ज्यादा बच्चों का रेस्क्यू
मनातू और तरहसी इलाके में बाल तस्करी के कई मामले सामने आए हैं. पिछले एक साल में 25 से अधिक बच्चे देश की राजधानी दिल्ली समेत कई और राज्यों से रेस्क्यू किए गए. इन बच्चों को यहां से ले जाकर दूसरे राज्यों में चूड़ी फैक्ट्री में काम कराए जाते हैं. इनमें दिल्ली, राजस्थान और गुजरात मुख्य है. पिछले दिनों दो बच्चों को दिल्ली से रेस्क्यू किया गया. दोनों बच्चे वहां एक चूड़ी फैक्ट्री में काम कर रहे थे.
बिहार का बाल तस्कर गिरोह सक्रिय- पलामू CWC
जिला बाल संरक्षण अधिकार के लिए काम करे पदाधिकारियों का मानना है कि पलामू के कई इलाकों में बिहार का एक बड़ा बाल तस्कर गिरोह काम कर रहा है. गिरोह के एजेंट जिला के सीमावर्ती इलाकों में अपना काम कर रहा है. खासकर मनातू, तरहसी और पांकी का इलाका बाल तस्करों से काफी प्रभावित है. हालियो दो बच्चों को भी बिहार के शेरघाटी के रहने वालों ने अपना निशाना बनाया और बच्चों को फुसलाकर मजदूरी की आग में ढकेल दिया. उनकी मांग है कि ऐसे मामलों में ना सिर्फ काम कराने वाली फैक्ट्री या कारखाना पर ही नहीं, उन बाल तस्करों पर भी कड़ी धाराओं के तहत केस करने की दरकार है. जिससे इलाके में बाल तस्करी पर लगाम लगाई जा सके.
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बिहार में बाल तस्करी चरम पर
बिहार में पिछले कुछ सालों में चार से 14 साल तक के नाबालिग बच्चे-बच्चियों के लापता होने का सिलसिला लगातार जारी है. प्रदेश से लगभग 7,000 नाबालिग बच्चे-बच्चियां लापता हैं. इन सभी लापता बच्चों के बारे में कुछ भी कह पाना अभी मुश्किल है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2011 से अब तक कुल 7,599 गुमशुदगी के मामले बिहार के अलग-अलग थानों में दर्ज हुए हैं, जिनमें से 2,730 नाबालिग बच्चियां और 4,866 नाबालिक बच्चे शामिल हैं. इनमें से तकरीबन 4,000 बच्चे बच्चियों मिल चुके हैं.