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Child Trafficking: पलामू के नौनिहालों पर बिहार के बाल तस्कर गिरोह की गिद्ध नजर - पलामू के मनातू में बाल तस्करी का नेटवर्क

पलामू में बाल अतिक्रमण हो रहा है, यूं कहें कि जिला में बाल तस्करी लगातार जारी है. जिला का मनातू का इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित है. बिहार से सटे सीमावर्ती इलाके में बिहार के बाल तस्कर गिरोह का एक बड़ा नेटवर्क पलामू में काम कर रहा है.

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Published : Jul 5, 2021, 5:27 PM IST

Updated : Jul 5, 2021, 10:02 PM IST

पलामूः गुजरे वक्त में जिसकी शान राजशाही से हुआ करती थी. लेकिन गुजरे वक्त के साथ शान में गुस्ताखी होती गई. पलामू के चेहरे पर वक्त के थपेड़ों के साथ बदनुमा दाग भी लगता गया. कभी नक्सलियों की धमक से यहां की धरती कांप गई, कभी जमीनी अदावत में खून बहे. दुस्साहस की बानगी ऐसी कि यहां बचपन का अतिक्रमण हो रहा है. 90 का दशक देशभर में बंधुआ मजदूरी के लिए पलामू चर्चा में रहा. अब यह इलाका बाल मजदूरों का बड़ा केंद्र बन गया है, बाल तस्करी का एक बड़ा अड्डा बन गया है.

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पलामू के बिहार से सटे सीमावर्ती इलाकों से बड़ी संख्या में बच्चों का बाहर के राज्यों में सौदा किया जा रहा है. बच्चों को दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, यूपी समेत कई राज्यों में भेजा जा रहा है. पलामू का मनातू, चैनपुर, तरहसी, पिपराटांड़, पांकी के इलाके में यह गिरोह सक्रिय है. बिहार का ये बाल तस्कर गिरोह का एक बड़ा नेटवर्क यहां काम कर रहा है. इसके कई एजेंट बच्चों के मन पर प्रहार कर, उन्हें बरगलाकर, अपनी चिपनी-चुपड़ी बातों से उन्हें झांसे में लेते हैं. बात यहां भी नहीं बनी तो परिजनों को एक मोटी रकम का लालच देकर उनसे उनके बच्चों का सौदा कर लेते हैं. गरीब और लाचार परिजन भी आखिर क्या करे, मुट्ठीभर पैसों की चाहत में वो अपने बच्चों को मजदूरी आग में झोंक देते हैं.

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एक साल में 25 से ज्यादा बच्चों का रेस्क्यू

मनातू और तरहसी इलाके में बाल तस्करी के कई मामले सामने आए हैं. पिछले एक साल में 25 से अधिक बच्चे देश की राजधानी दिल्ली समेत कई और राज्यों से रेस्क्यू किए गए. इन बच्चों को यहां से ले जाकर दूसरे राज्यों में चूड़ी फैक्ट्री में काम कराए जाते हैं. इनमें दिल्ली, राजस्थान और गुजरात मुख्य है. पिछले दिनों दो बच्चों को दिल्ली से रेस्क्यू किया गया. दोनों बच्चे वहां एक चूड़ी फैक्ट्री में काम कर रहे थे.

बिहार का बाल तस्कर गिरोह सक्रिय- पलामू CWC

जिला बाल संरक्षण अधिकार के लिए काम करे पदाधिकारियों का मानना है कि पलामू के कई इलाकों में बिहार का एक बड़ा बाल तस्कर गिरोह काम कर रहा है. गिरोह के एजेंट जिला के सीमावर्ती इलाकों में अपना काम कर रहा है. खासकर मनातू, तरहसी और पांकी का इलाका बाल तस्करों से काफी प्रभावित है. हालियो दो बच्चों को भी बिहार के शेरघाटी के रहने वालों ने अपना निशाना बनाया और बच्चों को फुसलाकर मजदूरी की आग में ढकेल दिया. उनकी मांग है कि ऐसे मामलों में ना सिर्फ काम कराने वाली फैक्ट्री या कारखाना पर ही नहीं, उन बाल तस्करों पर भी कड़ी धाराओं के तहत केस करने की दरकार है. जिससे इलाके में बाल तस्करी पर लगाम लगाई जा सके.

पलामू में बाल तस्करी

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बिहार में बाल तस्करी चरम पर

बिहार में पिछले कुछ सालों में चार से 14 साल तक के नाबालिग बच्चे-बच्चियों के लापता होने का सिलसिला लगातार जारी है. प्रदेश से लगभग 7,000 नाबालिग बच्चे-बच्चियां लापता हैं. इन सभी लापता बच्चों के बारे में कुछ भी कह पाना अभी मुश्किल है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2011 से अब तक कुल 7,599 गुमशुदगी के मामले बिहार के अलग-अलग थानों में दर्ज हुए हैं, जिनमें से 2,730 नाबालिग बच्चियां और 4,866 नाबालिक बच्चे शामिल हैं. इनमें से तकरीबन 4,000 बच्चे बच्चियों मिल चुके हैं.

लगातार बढ़ रहा अपराध
बिहार में लगातार बढ़ रहे अपराध और लगभग हजारों की संख्या में गायब हो रहे बच्चों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. बिहार में इन दिनों लगातार मानव तस्करी का मामला बढ़ता ही जा रहा है. बाल तस्करी के मामले में बिहार तीसरे नंबर पर है. बिहार में हर दिन एक बच्चे की तस्करी किया जा रहा है. देश में राजस्थान और पश्चिम बंगाल के बाद बाल तस्करी के दर्ज प्रकरणों के मामले में बिहार तीसरा राज्य बन गया है.

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बच्चों का अंतहीन शोषण

पलामू में नाबालिगों की तस्करी (Minor Trafficking) और उनके साथ अत्याचार की कई खबरें सामने आ रही हैं. नाबालिगों से चूड़ी फैक्ट्री में 18 से 20 घंटे तक काम लिया जा रहा है और उन्हें खाना तक नहीं दिया जाता. इसका खुलासा खुद वहां प्रताड़ना झेल रहे बाल मजदूरों (Child Laborers) ने किया है.

आपबीती में बच्चे बताते हैं कि उन्हें बंद कमरों में रखा जाता था और 24 घंटे में मात्र दो वक्त ही खाने के लिए दिया जाता था. उनसे 18 से 20 घंटे काम लिया जाता था और बाहर नहीं निकलने दिया जाता था. मंझौली के बच्चे के बताया कि उसकी मां बीमार थी और पिताजी मजदूरी का काम करते हैं. तस्कर ने उन्हें पैसे का लालच दिया और काम करने के लिए दिल्ली बुलाया. आठ महीने तक वे दिल्ली में रहे, लेकिन उसे मजदूरी के रूप में एक रुपये भी नहीं मिले.

सीडब्ल्यूसी और चाइल्डलाइन की पहल लाई रंग

सीडब्ल्यूसी (CWC) पलामू और चाइल्डलाइन (Childline) लगातार काम कर रहा है. उन्हीं की अथक प्रयास का नतीजा है कि 25 से ज्यादा बच्चों को उनका घर और बचपन वापस मिला. पिछले दिनों 2 बच्चों को दिल्ली से रेस्क्यू किया गया, उससे पहले भी कई बच्चों को राजस्थान समेत कई राज्यों से घर वापस लाया गया. लेकिन बचपन का अतिक्रमण कर रहे इस गिरोह पर लगाम लगाने की पुरजोर दरकार है, ताकि नौनिहाल मजदूरी की आग में ना झुलसे और पलामू के सिर से बाल मजदूरी का स्याह धब्बा हमेशा के लिए मिट जाए.

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बाल तस्करी समाज के लिए धब्बा

बाल तस्करी समाज के माथे पर लगा एक बड़ा कलंक है. ना सिर्फ भारत बल्कि देश-दुनिया के सैकड़ों देश इसकी निंदा करते है और इसे एक जघन्य अपराध मानते हैं. मानव तस्करी के साथ-साथ बाल तस्करी पर लगाने के लिए हर वो उपाय किए जा रहे हैं. ताकि पूरी दुनिया को इस अपराध से मुक्त किया जा सके. समाज के प्रबुद्ध लोग भी इसकी भर्त्सना करते हैं. समय-समय पर फिल्मों के माध्यम से भी इसके मर्म को उकेरने की कोशिश की गई है. फिल्म अभिनेता मनोज बायपेयी भी बाल तस्करी को समाज के लिए धब्बा मानते हैं. वो कहते हैं कि ''बाल तस्करी न केवल एक खतरा है, बल्कि यह समाज पर एक धब्बा भी है. हमें समाज के रूप में अपनी सारी इच्छाशक्ति और ताकत से इसपर तुरंत लगाम लगाना चाहिए."

Last Updated : Jul 5, 2021, 10:02 PM IST

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