जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम के सुदूरवर्ती गांव में फिर से पनप रहा नक्सलवाद. लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद नक्सली संगठन अपना फायदा तलाशने की कोशिश में लगे हैं. नक्सली बेरोजगार युवाओं को निशाना बनाकर नक्सलवाद की ओर खींच कर रहे हैं. इन्हीं के जरिए नक्सली अपने संगठन का विस्तार करने की तैयारी में जुटे हैं.
25 मई 1967 को पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से पूरे देश में पनपा नक्सल
नक्सलबाड़ी गांव से चारु मजुमदार, कानू सान्याल के नेतृत्व में बंदूक के दम पर सत्ता पर आधिपत्य जमाना ही नक्सलवाद था. इन नेताओं के शुरुआती उद्देश्य के मुताबिक, बंदूक के दम पर उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया. चारु मजूमदार और कानू सान्याल का मानना था कि देश के कोने-कोने में बड़े जमींदारों की ओर से किसानों पर किए जा रहे उत्पीड़न पर लगाम लगाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की शुरुआत की गई. जिसके बाद किसानों को एकत्रित करके जनता अदालत का आह्वान किया जाता था. किसानों और छोटे जातियों पर हो रहे अन्याय को न्याय दिया जाने लगा. किसान और छोटे जाती के लोग बड़े तबके में सीपीआई पार्टी में शामिल होने लगे. छोटे तौर पर शुरुआत किया गया यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में आग की तरह फैलने लगा. पश्चिम बंगाल के बाद केरल तो वहीं बिहार में जमींदारों के शोषण से मुक्त होने के लिए बड़े तबके में लोग सीपीआई में शामिल होने लगे.
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इस आंदोलन की रूप रेखा चीन के कॉम्युनिस्ट नेता माओ की नीतियों से मिलती जुलती थी. जिसे बाद में माओवादी नाम दिया गया. आंध्र प्रदेश में सितारमैय्या कोंडापल्ली के नेतृत्व में पीपल्स वार हथियारबंद की शुरुआत होने लगी. जहां इसे दो वर्गों में विभाजित किया गया. गुरिल्ला आर्मी जिनका प्रमुख उद्देश्य बंदूक के दम पर लड़ना था, तो दूसरी और पोलित ब्यूरो जिसे थिंक टैंक कहा गया है. 1967 में शुरू हुई चीन में पीजेंट क्रांति की आग भारत में भी फैलनी लगी. देश के आंध्र प्रदेश में मुपल्ला लक्ष्मण राव और बिहार में बिनोद मिश्रा की अगुवाई में सामंती प्रथा और भूमि-सुधार के लिए इसकी शुरुआत की गई.
नक्सलियों की गिरफ्त में पूर्वी सिंहभूम के प्रावसी मजदूर
माओवादी की आग धीरे-धीरे बिहार (वर्तमान में झारखंड) के कई जिलों में फैलने लगी. जिसमें कोल्हान, पलामू, गुमला, लातेहार, सिमडेगा, खूंटी के किसानों को भी इसकी भनक लगने लगी. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में नक्सली वर्तमान में रणनीति बनाने में जुट चुके हैं. वैश्विक महामारी कोरोना के कहर के कारण देश की अर्थव्यवस्था बेपटरी पर है. ऐसे में मजदूरों की घर वापसी होने लगी है. पूर्वी सिंहभूम में दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या 8 हजार 645 दर्ज की गई है. जिनमें से 1 हजार 622 स्किलड श्रमिक, 1 हजार 486 सेमी स्किलड श्रमिक और 5 हजार 390 अनस्किल्ड प्रवासी मजदूर शामिल हैं.
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प्रखंड के मुताबिक प्रवासी श्रमिकों का आंकड़ा इस प्रकार है
- बहरागोड़ा-1 हजार 268, बोड़ाम- 966, चाकुलिया-1 हजार 537, धालभूमगढ़ 616, डुमरिया 761
- घाटशिला- 499, गोलमुरी और जुगसलाई- 182, गुड़ाबांधा- 345
- पोटका- 747, पटमदा- 1 हजार 138 और मुसाबनी प्रखंड के 596 प्रवासी मजदूर शामिल हैं.