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कहीं गुम न हो जाए अंधार झोर की 200 साल पुरानी पहचान - traditional musical instrument

पूर्वी सिंहभूम जिले के अंधार झोर गांव में 200 साल से ग्रामीण वाद्य यंत्र बनाने का काम कर रहे हैं. यहां बनाए गए तबलों को उस्ताद जाकिर हुसैन सहित कई मशहूर कलाकारों ने बजाया है. अंधार झोर के तबलों और ढोल को बजाकर कई कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है लेकिन इसे बनाने वालों की कला पहचान की मोहताज बनी हुई है.

Andhar Jhor village
अंधार झोर गांव की कहानी

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Published : Jan 22, 2020, 3:47 PM IST

Updated : Jan 22, 2020, 8:29 PM IST

जमशेदपुरः पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बोड़ाम प्रखंड में एक गांव है अंधार झोर. शहर की चकाचौंध से दूर कच्ची-पक्की सड़कों से होते हुए इस गांव में पहुंचने पर यहां तबला, ढोलक और नगाड़े जैसे वाद्य यंत्रों की आवाज गूंजती मिलेगी. दरअसल, इस गांव के लोगों का ये पुस्तैनी काम है. अंधार झोर में पारंपरिक वाद्य यंत्र बनाने का काम करीब दो सौ साल पहले से किया जा रहा है. यहां बनाए गए तबलों को उस्ताद जाकिर हुसैन सहित कई मशहूर कलाकारों ने भी बजाया है. इस काम के लिए यहां के कारीगरों को कई संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं. यहां के वाद्य यंत्र पंजाब, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तक मशहूर हैं.

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कारीगर मेघनाथ रुहीदास बताते है कि पूर्व में इस गांव के चारो तरफ घना जंगल था, जिससे गांव में अंधेरा रहता था. यही वजह है कि इस गांव का नाम अंधार झोर पड़ा. इस गांव में शुरू से ही वाद्य यंत्र को बनाने का काम किया जाता रहा है. गांव की पुरानी परंपरा को देखते हुए अंधार झोर ढोलकपुर भी कहा जाता है. अंधार झोर गांव में ग्रामीण ढोल, नगाड़ा, मांदर, मृदंग, तबला, ढोलकी और सिंघ बाजा बनाते हैं. वाद्य यंत्र बनाने के जंगल से लकड़ी और बाजार से दूसरे जरूरी सामान लाकर इसे बड़ी मेहनत से तैयार किया जाता है.

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कारीगरों की मुश्किल
इस पुस्तैनी काम से अब कारीगरों का मोहभंग होने लगा है. गांव में 70 परिवार रहते हैं, जिनमे सिर्फ 15 परिवार ही अब पारंपरिक वाद्य यंत्र बनाते हैं. कारीगरों की मानें को नई तकनीक के वाद्य यंत्रों के कारण पारंपरिक वाद्य यंत्र के बाजार पर असर पड़ा है. उनका ये भी कहना है कि शास्त्रीय संगीत में तबला का महत्व है लेकिन अब तबला बजाना सीखने वालों में कमी आई है. ऐसे में उचित कीमत नहीं मिलने के कारण कारीगर झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं और पुस्तैनी काम छोड़कर मजदूरी करने लगे हैं. वहीं कुछ ग्रामीण सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं और किसी तरह इस पुस्तैनी पेशे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

प्रशासन की पहल
इन कारीगरों की बेहतरी के लिए सरकार ने अब तक कोई पहल नहीं की है. ईटीवी भारत ने जब प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी दी तो उप विकास आयुक्त बी माहेश्वरी ने कहा कि वे अंधार झोर गांव का दौरा कर ग्रामीणों से रूबरू होकर उनकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करेंगे. इसके साथ ही परंपरागत वाद्य यंत्रों के लिए सही बाजार भी उपलब्ध कराएंगे.

अंधार झोर के तबलों और ढोल को बजाकर कई कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है लेकिन इसे बनाने वालों की कला पहचान की मोहताज बनी हुई है. बहरहाल, सही बाजार उपलब्ध कराने की एक छोटी सी कोशिश, इनकी जिंदगी की ताल और लय ठीक कर सकती है.

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यहां बनाए गए वाद्य यंत्रों की कीमत
पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बनाने के लिए नीम, कटहल, सीसम, गम्हार और आम का लड़की का इस्तेमाल किया जाता है. ढोलक और तबले के मध्य में लोहे का पाउडर का लेप लगाया जाता है. इसे सही आकार में लाने और चमड़े को लगाने के बाद, सही ताल के लिए सेट किया जाता है.

वाद्य यंत्र कीमत
ढोलक रस्सी ₹1000 से 2000
ढोलक नाल ₹2500 से 4000
तबला ₹2500 से 4000
डमरू ₹200 से 300
मांदर ₹2500 से 3000
नगाड़ा ₹4000 से 5000
Last Updated : Jan 22, 2020, 8:29 PM IST

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