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Teacher's Day Special: दोनों पैर गंवाने के बाद भी बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे सिकंदर

कहते हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. इसकी बानगी दिखी जमशेदपुर के सिकंदर में. जिन्होंने अपने दो पैर गंवाने के बाद अपने मजबूत इरादों की बदौलत जिस्मानी लाचारी को पीछे छोड़ बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

Sikander is teaching children even after losing two legs in Jamshedpur
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Published : Sep 5, 2021, 6:04 AM IST

जमशेदपुरः कोरोना काल में आम लोगों की जिंदगी के साथ कई व्यवस्थाएं भी बदली हैं. वहीं इस महामारी के दौर में छात्रों के पठन-पाठन पर भी असर पड़ा है. शिक्षण संस्थान बंद हैं, जबकि कई ऐसे शिक्षक हैं, जो कोरोना काल में राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं. जमशेदपुर शहर से कुछ दूर ग्रामीण इलाके में दोनों पैर से दिव्यांग सिकंदर अपनी अपंगता को चुनौती देते हुए बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

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दिव्यांगता को अभिशाप कहा जाता है, पर आज देश में ऐसे कई व्यक्ति हैं जो पूरी तरह दिव्यांग होने के बावजूद अपनी मंजिल पाने में कामयाब रहे हैं और समाज में एक मिसाल कायम की है. कुछ ऐसी ही कहानी है राज नगर के रहने वाले 45 वर्षीय सिकंदर कुदादा की है. जिन्होंने अपने दोनों पैरों के कटने के बावजूद अपनी दिव्यांगता को चुनौती देकर ग्रामीण बच्चों को पढ़ा रहे हैं.

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राज नगर के रहने वाले सिकंदर कुदादा बीकॉम की पढ़ाई करने के बाद निजी स्कूल में हेडमास्टर बनकर बच्चों को पढ़ाते थे. साल 2010 में अचानक बीमार पड़ने के बाद उनके पैर में गंभीर बीमारी होने से डॉक्टर्स ने उनके दोनों पैर काट दिए. इसके बाद सिकंदर पूरी तरह से असहाय होकर पांच साल तक बेड पर रहे. पूरी तरह दिव्यांग होने के कारण उनका कहीं भी आना जाना बंद हो गया. लेकिन कुछ समय बाद कुछ साथियों की मदद से उनके दोनों पैर में कैलिपर लगाया गया, जिसके बाद सिकंदर खड़े हुए. सिकंदर को बच्चों को पढ़ाने का जूनून था, पर वक्त और हालात से मजबूर सिकंदर के पांव चले जाने के बाद कोई भी उनके पास नहीं आता था, छोटे भाई-बहन के सहारे वो रहने लगे.

मास्टर सिकंदर की पाठशाला

सिकंदर कुदादा बताते हैं कि कुछ समय वो जमशेदपुर से सटे ग्रामीण इलाका मतलाडीह में रहने लगे और बाद ग्रामीणों के बच्चे को पढ़ाने के लिए कई ग्रामीणों से बात की. जिसके बाद बच्चे उनसे ट्यूशन पढ़ने उनके घर आने लगे. दिव्यांगता पेंशन राशि से सिकंदर ने बच्चों के लिए टेबल बेंच खरीदा.

मास्टर सिकंदर से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने बताया कि उन्हें मालूम है कि उनके सर के दोनों पांव नहीं हैं, पर उनमें हिम्मत है और वो उन्हें अच्छे से पढ़ाते हैं. वो फीस भी कम लेते है हमें उनसे पढ़ना अच्छा लगता है. ग्रामीण भी सिकंदर की पढ़ाई से पूरी तरह संतुष्ट हैं. उनका कहना है कि उन्हें अपने गांव के इस मास्टर पर गर्व है कि उनके बच्चे को कम पैसे में अच्छी शिक्षा दे रहे हैं, सिकंदर मास्टर हमारे लिए प्रेरणा है.

स्कूली बच्चों के बीच मास्टर सिकंदर

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कोरोना काल से पूर्व उनके पास गांव के 150 बच्चों को वह पढ़ा रहे थे. लेकिन लॉकडाउन में बच्चों का आना बंद हो गया. सिकंदर बताते है कि उन्हें इस बात की चिंता होने लगी कि बच्चे घर में रहेंगे तो कैसे पढ़ेंगे, पर वो हिम्मत नही हारे. सिकंदर ने ग्रामीणों से बात कर कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. लेकिन आज भी बच्चों की संख्या घट गई पर उन्होंने पढ़ाना नहीं छोड़ा.

मास्टर सिकंदर दोनों पैर नहीं हैं

सिकंदर बताते है कि फीस सौ रुपये से 150 रुपये तक है, वो नर्सरी से क्लास 10वीं तक के बच्चों को अलग-अलग समय में पढ़ाते हैं, बच्चे मास्क पहनकर पढ़ने आते हैं. सिकंदर मास्टर का कहना है कि पैसा कमाना मेरा उद्देश्य नहीं, मेरा सबसे बड़ा धन मेरे छात्रों की सफलता है और इसी जुनून के साथ मैं अपने छात्रों को पढ़ाता हूं. शारीरिक लाचारी को लेकर वो कहते हैं कि इंसान को अपनी कमजोरी नहीं बनानी चाहिए, मजबूत सोच के साथ मंजिल पाने का प्रयास करना चाहिए.

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