जमशेदपुरः शहर में सौ साल पुराना इस्पात उद्योग के साथ साथ कई ऐसी धरोहर है, जिसका इतिहास आज भी कायम है और ये अपने आप में आज भी बेमिसाल है. उन्ही ऐतिहासिक धरोहरों में सेंट जॉर्ज चर्च का नाम भी शामिल है. 105 साल पुराने अंग्रेजों की बनाई इस चर्च से जुड़े लोग खुद पर गर्व करते है. इस चर्च का हर एक हिस्से का अपना एक इतिहास है.
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जमशेदपुर के बिष्टुपुर नॉर्दन टाउन में एक एकड़ क्षेत्र में स्थित सेंट जॉर्ज चर्च पूर्वी सिंहभूम जिला का सबसे पुराना चर्च है. 105 साल पुराना यह चर्च ईसाई धर्मावलंबियों के लिए खास मायने रखता है. स चर्च में प्राथना करने वाले लोग चर्च के इतिहास को याद कर गर्व महसूस करते हैं. जमशेदपुर के 105 साल पुराने संत जॉर्ज चर्च में कोरोना काल के बाद इस साल धूमधाम से क्रिसमस मनाने की तैयारी है. ऐतिहासिक धरोहर होने के साथ साथ चर्च से लोगों का विश्वास भी जुड़ा हुआ है. इसलिए यहां ईसाई धर्मावलंबी के लोग काफी संख्या में आते हैं.
28 दिसंबर 1914 में सेंट जॉर्ज ने रखी थी नींव
ब्रिटिश शासन काल में इंग्लैंड से आकर जमशेदपुर में स्थापित टाटा स्टील के अंग्रेज अधिकारियों ने प्राथना के लिए बिस्टुपुर नार्दन टाउन में 1914 में 28 दिसंबर के दिन सेंट जॉर्ज चर्च की नींव रखी. बताया जाता है कि सेंट जॉर्ज एक सामाजिक व्यक्ति थे जो सदैव समाज मे लोगों की भलाई के लिए काम करते रहते थे. गरीबों के प्रति उनका विशेष लगाव था, जिसके कारण उन्हें संत की उपाधि दी गयी और उन्ही के नाम पर जमशेदपुर में सेंट जॉर्ज चर्च की नींव रखी गयी.
St George Church का शिलापट्ट
उस दौरान जमशेदपुर के स्टील प्लांट के लिए इंग्लैंड से ब्लास्ट फर्नेस के लिए ईंटें लाई गयी थी, जिससे सेंट जॉर्ज चर्च का निर्माण किया गया. बिना ढलाई और बिना पिलर से बना यह चर्च आज भी मजबूती के साथ खड़ा है. 1916 में 23 अप्रैल के दिन कोलकाता से आए विशप ने चर्च में प्राण प्रतिष्ठा संस्कार किया और पहली प्राथना सभा हुई. चर्च के निर्माण के बाद आज तक मरम्मत करने की जरूरत नहीं पड़ी है, सिर्फ रंग रोगन किया जाता है. चर्च के चारों तरफ रंग बिरंगे फूलों का बागीचा है.
105 साल पुराने इस चर्च में बैठने के लिए लकड़ी के बने बैंच आज भी मजबूती के साथ सुशोभित हो रहे है. चर्च के दरवाजे और खिड़कियां आज भी नहीं बदली गयी हैं. इस चर्च में अंग्रेजी और हिंदी दो भाषाओं में प्राथना होती है. ठंड के मौसम में सुबह 7.30 बजे से 9 बजे तक अंग्रेजी और 10 बजे से 11.30 बजे तक हिंदी में प्राथना होती है. जबकि गर्मी के मौसम में सुबह 8 बजे से 9.30 तक अंग्रेजी में और 10 बजे से 11.30 तक हिंदी में प्राथना होती है.
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1916 से अब तक 21 पादरियों ने चर्च में योगदान दिया
चर्च के 22वें पादरी दीपक अनिल जोजो बताते हैं कि 105 साल पुराने इस चर्च से जुड़ी कई बातें है जो अपने आप में इतिहास है. चर्च के सबसे ऊपर घंटा घर है जिसमें टाटा स्टील द्वारा बनाया गया बड़ा घंटा आज भी बजता है जिससे विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है. अनिल बताते हैं कि जमशेदपुर कीनन स्टेडियम में क्रिकेट खेलने के लिए जब भी इंग्लैंड और वेस्टइंडीज की टीम आती थी तब मैच खेलने जाने से पूर्व टीम इस चर्च में आकर प्राथना करती थी और उस टीम को जीत भी मिली है. चर्च से जुड़ी कई बातों का जिक्र करने के बाद पादरी दीपक अनिल जोजो ने बताया है कि इस चर्च से लोगों का विश्वास जुड़ा हुआ है और मुझे भी गर्व होता है कि मैं ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ा हूं.
जमशेदपुर में छोटी बड़ी कैथोलिक चर्च के अलावा प्रोटेस्टेंट चर्च है जिनकी संख्या 50 के लगभग है, जहां ईस्टर, क्रिसमस, गुड फ्राइडे मनाया जाता है. 105 साल पुराना सेंट जॉर्ज चर्च प्रोटेस्टेंट चर्च के अधीन 18 चर्च हैं. सेंट जॉर्ज चर्च से 3 हजार सदस्य जुड़े हैं. चर्च में प्राथना करने आने वाली अनिता पूर्ती और ब्युला कच्छप बताती हैं कि वो बचपन से यहां आती हैं इस ऐतिहासिक चर्च से उनका विशेष लगाव है. वहीं अजित होरो चर्च की बनावट से आकर्षित हैं. इस ऐतिहासिक चर्च में आना अच्छा लगता है उन्हें गर्व महसूस होता है. 50 साल से इस चर्च से जुड़े जयंत कच्छप बताते हैं कि दूर रहने के बावजूद हमे यहां आना गर्व महसूस करते है. संत जॉर्ज ने जिस तरह अपना जीवन समाज के प्रति लगाया समाज के लिए अच्छा काम किया. जिससे उनके नाम पर चर्च बना है आज की पीढ़ी को भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है.
St George Church के अंदर का दृश्य
संत जॉर्ज चर्च- एक परिचय
28 दिसंबर 1914 में चर्च की नींव रखी गयी. 23 अप्रैल 1916 में चर्च की स्थापना हुई और इसी दिन पहली प्राथना सभा आयोजित की गयी. स्टील प्लांट के लिए इंग्लैंड से ब्लास्ट फर्नेस के लिए ईंटें लाई गयी थी, इन्हीं ईंटों से इस चर्च का निर्माण कराया गया है. बिना ढलाई और पिलर से यह चर्चा बनाया गया है. चर्च के फर्नीचर सौ साल पुराने हैं. चर्च के घंटा घर में लगाया गया बड़ा घंटा का निर्माण टाटा स्टील के ढांचे से किया गया है.