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अंधविश्वास: अंगारों पर चलकर, कोड़े खाकर महिलाएं करती हैं मां मंगला की पूजा, सालों पुरानी है पंरपरा

जमशेदपुर के बिष्टुपुर नॉर्दन टाउन में प्रतिवर्ष मां मंगला की पूजा की जाती है. पूजा स्थल से कुछ दूरी पर एक गहरा गड्ढा किया जाता है, जिसमें कोयले को जलाकर रखा जाता है. महिलाओं को मां मंगला को मूर्ति तक पहुंचने से पहले उस आग पर चलकर गुजरना पड़ता है.

Women worship maa Mangala by walking on embers in jamshedpur
महिलाएं करती हैं मां मंगला की पूजा

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Published : Apr 21, 2021, 6:41 PM IST

Updated : Apr 22, 2021, 9:37 AM IST

जमशेदपुर: समाज में आज भी कई ऐसी परंपराएं हैं, जो दिल दहला देती है. पुरानी परंपराओं पर आस्था रखते हुए लोग अपनी जान जोखिम में डालकर इनको निभाते हैं. कुछ ऐसा ही मंजर जमशेदपुर में मां मंगला की पूजा के दौरान देखने को मिला. पूजा के दौरान भक्त आग पर चलकर आते हैं और कोड़े खाकर पूजा में शामिल होते हैं. इस पूजा में किन्नर भी शामिल होते हैं. पूजा करने वाले मुख्य पुजारी बताते हैं कि सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्त को मां कष्ट सहने की शक्ति देती है.

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जमशेदपुर के बिष्टुपुर नॉर्दन टाउन में प्रतिवर्ष मां मंगला की पूजा की जाती है. मूर्ति स्थापित कर पूजा करने वाली महिलाएं नदी से कलश में जल भरकर अपने सिर पर लेकर नाचते हुए पूजा स्थल पहुंचती हैं. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह सिर पर कलश लेकर आने वाली महिलाओं का भक्त स्वागत करते हैं और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं.

पूजा स्थल से कुछ दूरी पर 10 फीट व लंबा 1 फिट गहरा गड्ढा किया जाता है, जिसमें लकड़ी के कोयले को जलाकर रखा जाता है. सिर पर कलश लेकर आने वाली महिलाओं को मां मंगला की मूर्ति तक पहुंचने से पहले उस आग पर चलकर गुजरना पड़ता है.

सिर पर कलश लेकर झूमती हैं महिलाएं

मां मंगला की पूजा करने वाले भक्तों में एक किन्नर अपनी जीभ में चांदी का त्रिशूल आर पार करके सबसे आगे चलता है, जबकि आस-पास चलने वालों की आंखे बिना पलक झपकाए खुली रहती हैं. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में सिर पर कलश लिए महिलाएं झूमती हुईं बेखौफ आग से गुजरती हैं. इस पूजा में किन्नरों को भी शामिल किया जाता है, वो भी सिर पर जल भरे कलश को लेकर आग पर चलकर आगे बढ़ते हैं. ढोल नगाड़े की धुन पर सभी महिलाएं झूमती हुई मां मंगला की मूर्ति की परिक्रमा कर अपने अपने कलश को पूजा स्थल पर रखती हैं.

महिलाओं पर बरसाए जाते हैं कोड़े

कुछ महिलाएं जब पूजा स्थल के पास पहुंचती है तो उनके दोनों हाथों और पैरों पर कोड़े बरसाए जाते हैं, जो काफी दर्दनाक होता है. हालांकि कोड़े खाने के दौरान महिलायें उफ्फ तक नहीं करतीं, जबकि कोड़े मारने वाला कोड़े मारने के बाद उस महिला के पैर छूकर प्रणाम करता है. पूरे माहौल में महिला भक्त झूमती रहती हैं. इसके बाद महिलाओं पर पानी डाला जाता है जिससे उनका झूमना बंद होता है.

जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता

पूजा करने वाले मुख्य पुजारी संदीप बताते हैं कि यह वर्षों पुरानी परंपरा है. चैत माह में मां मंगला की पूजा में जंगल के जितने भी फल फूल होते हैं उन्हें चढ़ाया जाता है. पुजारी बताते हैं कि जो भी बड़ा कष्ट आने वाला होता है उसे दूर करने के लिए जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता है. इसे कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता.

जिस भक्त पर मां सवार होती हैं उसकी जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता है जिसमें कोई जख्म या दर्द नहीं होता. मां मंगला को सती की देवी भी कहते हैं, जिन्हें आग पसंद है. इसलिए आग पर चलने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और पैर जख्मी नहीं होता. लोगों का ऐसा मानना कि कोड़ा खाने से जादू टोना सब दूर हो जाता है. वो बताते है कि किन्नर को शुभ माना जाता है. लोग उनका आशीर्वाद लेते हैं.

किन्नरों की कुल देवी हैं मां मंगला

सोनी किन्नर बताती हैं कि जीभ में त्रिशूल गाड़ने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. सब मां की कृपा रहती है. पूर्व में किन्नरों की ओर से मां बहुचरा की पूजा की जाती थी, जो उनकी कुल देवी हैं. उन्हें अब मां मंगला के नाम से पूजा जाता है. इस बार पूजा में मां से यही मांगा है कि कोरोना काल जल्द से जल्द खत्म हो सभी सुरक्षित रहें. वे बताती हैं कि मां की भक्ति में लीन होकर महिलाएं झूमती हैं. इस पूजा को पूरे चैत माह में किया जाता है.

Last Updated : Apr 22, 2021, 9:37 AM IST

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