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मकर संक्रांति पर होती है खूनी जंग, खूब बरसता है धन - tradition of tribals

सोमवार को जमशेदपुर के दोमुहानी पास दो दिवसीय मुर्गा लड़ाई का आयोजन किया गया. इसमें पहले दिन 160 जोड़े लड़ाकू मुर्गों ने अपना दम दिखाया. इसमें पूर्व विधायक साधुचरण महतो ने भी दाव लगाया.

Cock fighting in jharkhand
झारखंड में मुर्गा लड़ाई

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Published : Jan 14, 2020, 1:45 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड में मकर संक्रांति से 10 दिन पहले और बाद तक आदिवासी समाज में एक उत्साह का माहौल देखने को मिलता है. इस उत्साह का कारण कुछ खास आयोजन होता है. जिसमें मुर्गा लड़ाई सबसे अलग है.

वीडियो में देखिए स्पेशल रिपोर्ट

दो मुर्गों के बीच होने वाली इस लड़ाई में जीतने वाले मुर्गे को इनाम तो मिलता ही है साथ ही उस मुर्गे की बोली भी लगती है. जो 200 रूपये से लेकर 2000 तक की होती है. इधर, पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में मकर संक्रांति का माहौल दिखना शुरू हो गया है. आदिवासी समाज में मुर्गा लड़ाई मकर संक्रांति के 2 दिन पहले से ही देखने को मिलने लगता है.

पूर्व विधायक ने भी लगाया दाव

जमशेदपुर के सोनारी दोमुहानी के पास हजारों की भीड़ मुर्गा लड़ाने वाले मैदान में अपने मुर्गे को लेकर जीत का दंभ भरते हैं. बता दें कि मुर्गा लड़ाई के मैदान में आने से पहले मुर्गे को पूरी तरह से तैयार किया जाता है. जिसमें मुर्गे के पैर में लोहे की पतली चाकू बांधी जाती है फिर मुर्गा मालिक एक टोकन लेकर मैदान में उतरता है. वहीं पुलिस प्रशासन भी इस आयोजन को लेकर मुस्तैद रहती है.

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मुर्गा लड़ाई मैदान में इचागढ़ के पूर्व विधायक साधु चरण महतो भी पहुंचे और जमकर मुर्गा लड़ाई का आनंद लिया. वहीं मैदान के चारों तरफ हाथ में पैसे लिए लोग लड़ने वाले मुर्गे पर दांव लगा रहे थे. इचागढ़ के पूर्व विधायक साधु चरण महतो ने कहा कि मकर पर्व झारखंड की संस्कृति का एक पुरानी धरोहर है और मकर संक्रांति से 2 दिन पहले से ही मुर्गा की लड़ाई शुरू हो जाती है और यह माना जाता है कि मुर्गा की लड़ाई के जरिए ही पूरे साल का एहसास किया जाता है.

बच्चे की तरह पालते हैं मुर्गा
इस आयोजन में मुर्गा लड़ाने वाले लोग अपने मुर्गे का नाम भी रखते हैं. डाली लाल मुर्गा का मालिक टिंकू का कहना है, कि उसने मुर्गे को बच्चे की तरह पाला पोषा है, और अब उसे जंग की मैदान में लेकर उतरे हैं. अगर जीतेंगे तो सामने वाले मुर्गा जिसे पालू कहा जाता है. उसे वह लेकर जाएंगे अगर हारे तो डाली लाल जीतने वाले मुर्गे के मालिक को देना पड़ेगा.

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बहरहाल, अपनी परंपरा और संस्कृति निभाना अच्छी बात है लेकिन बदलते समय के साथ खुलेआम पैसों का खेल इस बात को दर्शाती है कि आज भी समाज में जागरूकता की कितनी कमी है और जब यह सब प्रशासन और जनप्रतिनिधि के सामने हो तो और भी कई सवाल खड़े होते हैं.

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