हजारीबाग: कोरोना और लॉकडाउन की वजह से हर तरफ बेरोजगारी और बेकारी ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. ऐसे में आत्मनिर्भर बनना भी बड़ी चुनौती है. इस चुनौती को बरही प्रखंड के हरला गांव की महिलाओं ने स्वीकार किया है, जो पहले बांस के दौरी, पंखा, टोकरी, झुनझुना बनाती थी. वह आज चार कदम आगे बढ़कर फैंसी आइटम बना कर अपना जीवन यापन कर रही हैं. इसके साथ ही पूरे गांव को एक अलग पहचान दी है. 12 महिलाओं से शुरू हुए इस समूह में आज कई महिलाएं काम कर रही हैं और अपनी पहचान पूरे जिले में बना रही हैं.
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बांस से बना रही फैंसी आइटम
आधुनिकता के दौर में हाथ से बनाए जाने वाली सजावटी वस्तुओं की मांग इन दिनों बढ़ी है. बांस से बने सजावटी सामान ने वक्त के साथ अपनी उपयोगिता को बरकरार रखा है. ऐसे में हजारीबाग के बरही प्रखंड के सुदूरवर्ती हरला गांव की महिलाएं इन दिनों बांस से जुड़े फैंसी आइटम बना कर अपना जीवन यापन कर रही हैं. आलम यह है कि पहले जहां इक्का-दुक्का महिलाएं बांस का सामान बनाया करती थी. आज कई महिलाएं एक साथ एक कमरे में बैठकर तरह-तरह के सामान बना रही हैं और व्यवसाय भी कर रही हैं.
महिलाओं को रूर्बन मिशन से जोड़ा
महिलाओं को श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (Shyama Prasad Mukherjee Rurban Mission) से जोड़ा गया. इस मिशन की शुरुआत 21 फरवरी 2016 को हुई थी. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा शुरू किए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास को नई गति प्रदान करना है. ऐसे में इस मिशन के उद्देश्य को बरही प्रखंड की हरला गांव की महिलाएं पूरा कर रही हैं.