हजारीबाग:जिले का दूधमटिया जंगल (Dudhmatia Forest) हजारीबाग की पहचान है. इसी जंगल से वृक्षों का बंधन यानी वृक्षाबंधन की शुरुआत की गई थी. रिटायर्ड शिक्षक महादेव महतो, सुरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों ने वृक्षों को बचाने के लिए संकल्प लिया था. 26 वर्षों से हर साल 7 अक्टूबर के दिन वृक्षाबंधन कार्यक्रम किया जाता है. लोग वृक्ष लगाने और उसे बचाने का संकल्प लेते हैं. जहां कभी लकड़ी माफियाओं का राज था. वहां आज लाखों वृक्ष खड़े हैं. जो अन्य लोगों को संदेश भी दे रहा है कि हमें बचाओ हम तुम्हें जीवन देंगे.
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तेज गति से बढ़ती जनसंख्या और लोगों में अधिक से अधिक सुख-सुविधा की चाहत के कारण इन दिनों वृक्षों की कटाई जोर शोर से चल रही है. लेकिन हजारीबाग का दूधमटिया जंगल से एक पत्ता तोड़ना भी लोग गुनाह समझते हैं. दूधमटिया जंगल टाटीझरिया प्रखंड में पड़ता है. जहां आज से लगभग 30 वर्ष पहले लकड़ी माफिया और हाथी का आतंक था. आए दिन पेड़ काटे जाते थे. इसे देखकर स्थानीय शिक्षक महादेव महतो और सुरेंद्र सिंह समेत कई लोगों ने जंगल बचाने का बीड़ा उठाया. इसे लेकर लोगों को जागरूक किया गया. उस समय इन लोगों का भारी विरोध का भी सामना करना पड़े. लेकिन इन लोगों ने हार नहीं मानी और लोगों को समझाया और फिर वृक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की.
1200 से अधिक गांव में वृक्षाबंधन कार्यक्रम
वृक्षाबंधन कार्यक्रम के तहत लोगों को बताया कि वृक्ष है तो हम हैं. वृक्षाबंधन को पूजा से जोड़ा गया. वनदेवी के बारे में लोगों को बताया गया. जिसके बाद लोगों के मन में भय उत्पन्न हुआ और लोग समझने लगे कि वृक्ष हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है. 26 साल से 7 अक्टूबर को वृक्षाबंधन कार्यक्रम धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर हजारीबाग के साथ-साथ आसपास के लोग भी पहुंचते हैं और वृक्षाबंधन करते हैं. इस मौके पर पेड़ न काटेंगे और न काटने देंगे का संकल्प लिया जाता है. कई लोग दूसरे राज्य से भी यहां पर पहुंचे और पेड़ कैसे बचाया जाए ये जानकारी लेते हैं. हजारीबाग के अलावा पूरे झारखंड की बात की जाए तो 1200 से अधिक गांवों में वृक्षाबंधन कार्यक्रम इन दिनों चल रहा है. जिसकी शुरुआत इसी दूधमटिया जंगल से हुई है.