हजारीबागः आधुनिक जीवन में हर एक व्यक्ति की यह चाहत होती है कि वह कम मेहनत करे और अधिक से अधिक मुनाफा हो. इस मुनाफे के लिए वह अपने विरासत को भी भूलता जाता है, लेकिन हजारीबाग की रहने वाली रुकमणी देवी जो पेशे से पारा शिक्षिका हैं, अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए इन दिनों चाक चला रही हैं.
दीपावली होने के कारण दिन-रात चाक चलाकर दिया और दीपावली से जुड़े सामान खुद ही गढ़ रही हैं. रुकमणी देवी कहती हैं कि यह चाक नहीं बल्कि उनकी धरोहर है. इस धरोहर को वे आगे बढ़ा रही हैं. रुकमणी के पिता जाने-माने मूर्तिकार थे. उन्होंने रुकमणी को मिट्टी गढ़ना सिखाया. रुकमणी कहती हैं कि पिता की मृत्यु के बाद उस विरासत को वे आगे बढ़ा रही हैं और अपने बच्चे को भी सिखा रही हैं.
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रूढ़िवादी सोच से आगे
रुकमणी कुमारी के देवर कहते हैं कि हजारीबाग में कोई भी महिला नहीं है जो चाक चलाती है. चाक चलाने का काम पुरुष का होता है. क्योंकि इसमें ताकत बहुत लगती है. महिलाएं-पुरुष की मदद करती हैं, लेकिन उनकी भाभी ने यह दिखा दिया कि महिला भी चाक चला सकती है. जिस तरह से चाक धुरी पर घूमती है. ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन भी घूमता है. यह दिखाता है कि महिला पुरुष से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है. हमारे घर के बने हुए मिट्टी के सामान दीपावली में कई घरों की खूबसूरती भी बढ़ाएगी.