हजारीबाग: गांवों के विकास के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY) शुरू हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर 2014 को यह योजना शुरू की थी. इस योजना के तहत देश के सभी सांसदों को एक साल के लिए एक गांव को गोद लेकर वहां विकास कार्य करना होता है. इससे गांव में बुनियादी सुविधाओं के साथ ही खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, रोजगार आदि पर जोर दिया जाता है.
देखिए सांसद का आदर्श ग्राम जयंत सिन्हा ने जरबा गांव को लिया गोद
हजारीबाग संसदीय जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर एक गांव है जरबा, जिसे जयंत सिन्हा ने गोद लिया था, लेकिन इस गांव में 5 साल बीत जाने के बाद भी समुचित विकास नहीं हो पाया जो होना चाहिए. ऐसे में यहां के गांव के लोग की मिली जुली प्रतिक्रिया है. ग्रामीणों का कहना है कि जो हमने सपना देखा था वह पूरा नहीं हो पाया तो यहां के मुखिया का कहना है कि विकास के कार्य हुए हैं, लेकिन लोग इसे नजरअंदाज कर रहे हैं.
जरबा गांव में 5 हजार की आबादी
हजारीबाग का चूरचू प्रखंड का जरबा पंचायत को वर्ष 2015 में हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा ने आदर्श ग्राम बनाने के लिए गोद लिया था. जरबा की कुल आबादी लगभग 5000 है. जरबा पंचायत में दासोखाफ, मुकरू और जरबा गांव आता है. इस पंचायत में लगभग 600 परिवार रहते हैं. 14 माइल से जरबा तक की सड़क जर्जर है. जरबा गांव में भी सड़क की स्थिति ठीक नहीं है. आलम यह है कि सड़क के बीचो-बीच गंदी पानी बहती है, जिससे हर एक लोगों को समस्या से रूबरू होना पड़ रहा है. पानी सड़क पर बहने के कारण सड़क की स्थिति भी खराब होते जा रही है.
पेयजल सबसे बड़ी समस्या
यहां के ग्रामीणों का कहना है कि पेयजल यहां की सबसे बड़ी समस्या है. सुबह होते ही पेयजल की व्यवस्था खुद करना होता है. यहां जो पानी टंकी प्यास बुझाने की लगाया गया था वह अब काम नहीं कर रहा है. पहले तो कुछ दिनों तक पानी मिला, लेकिन अब सप्लाई पानी मिलना बंद हो गया है. आलम यह है कि हर घर अपना खुद से पेयजल की व्यवस्था किया है और बोरिंग की गई है. उन्होंने कहा कि टंकी तो बैठाया गया, लेकिन इसके बारे में सोचा नहीं गया. गांव की जो भौगोलिक स्थिति है इसके कारण पानी घर तक नहीं पहुंच पा रही है. यहां स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है. एक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया है, लेकिन उसे रेफरल अस्पताल की संज्ञा दी गई है. यहां मरीजों को सिर्फ रेफर कर दिया जाता है.
रोजगार की व्यवस्था नहीं
यहां के युवा कहते हैं कि रोजगार आदर्श ग्राम में होना चाहिए था, लेकिन रोजगार की व्यवस्था नहीं की गई है. आलम यह है कि हम लोगों को रोजगार के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. गांव में हाई स्कूल तो है, लेकिन कॉलेज की व्यवस्था नहीं की गई है, जिसके कारण यहां की बेटियां 10 किलोमीटर दूर चरही या फिर हजारीबाग जा कर आगे की पढ़ाई कर रही है तो दूसरी ओर यहां के किसान का कहना है कि सिंचाई की व्यवस्था हमारे खेतों में नहीं है. हम खुद ही अपना व्यवस्था खेती के लिए किए हैं. इस कारण खेती भी यहां प्रभावित हो रही है. हमने जो सपना देखा था कि गांव का विकास हो पाएगा, लेकिन अब यह सिर्फ और सिर्फ कोरा कागज साबित हो रहा है.
यहां के ग्रामीण का यह भी कहना है कि विकास के नाम पर सामुदायिक भवन बनाए गए हैं. पंचायत भवन भी है, लेकिन इसका उपयोग हमारे लिए नहीं है. विकास के नाम पर जरबा में बैंक खोल दिया गया है. यही हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार है. जरबा गांव की महिला भी अपने गांव से खुश नहीं हैं और उनका कहना है कि हम लोग ठगे हुए महसूस कर रहे हैं. हमारे पास पक्का घर भी नहीं है और हम लोग कई समस्याओं का हर दिन सामना कर रहे हैं.
गांव में हुआ है विकास: मुखिया
वहीं, दूसरी ओर इन सारी बातों को यहां की मुखिया खारिज करती है. उनका कहना है कि इस गांव में विकास हुआ है, जब से यहां के सांसद जयंत सिन्हा ने गांव को गोद लिया है तो इस गांव में सामुदायिक भवन, स्वास्थ्य उपकेंद्र, स्कूल दसवीं तक हो गया है. इसके साथ ही साथ पेयजल के लिए हमने टंकी लगाया है, लेकिन यहां के गांव के लोग उसका उपयोग नहीं करते हैं. क्योंकि यह पीपीपी मोड पर है. गांव के लोग पैसा देना नहीं चाहते हैं. इस कारण उन्हें सुविधा नहीं मिल पाया है. इसके साथ ही साथ सड़कों का जाल बिछा है. उनका यह भी कहना है कि 14 माइल से लेकर जो गांव को जोड़ता है उस सड़क की स्थिति खराब है, लेकिन दूसरी सड़क जो पीछे तरफ से गांव को जोड़ती है वो अच्छी सड़क है.
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इस बात पर जब जयंत सिन्हा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमने गांव का विकास किया है. सामुदायिक भवन बनाए हैं और उस सामुदायिक भवन को रोल मॉडल की तरह अन्य पंचायतों में ही बनाया जाएगा. इसके साथ ही साथ पेयजल, सड़क, स्कूल और स्वास्थ्य को लेकर भी मूलभूत परिवर्तन किया गया है. आने वाले समय में वहां और भी कार्य किए जाएंगे.
आदर्श ग्राम जरबा को लेकर ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों के बीच मिली जुली प्रतिक्रिया है, लेकिन यह बात सही है कि जो स्तर का गांव होना चाहिए था गोद लेने के बाद वह नहीं हो पाया. जरूरत है ऐसे योजना को धरातल पर उतारने के लिए पूरा होमवर्क करने की ताकि आदर्श गांव सचमुच आदर्श साबित हो.