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ना मूर्ति... ना पिंडी... यहां होती है निराकार माई की पूजा, भक्तों की सभी मुरादें होती है पूरी

पूरे देश में नवरात्र उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. जगह-जगह मां दुर्गा की पूजा हो रही है. हजारीबाग के इचाक में मां की निराकार रूप की पूजा होती है. जहां ना तो पिंडी है ना तो कोई मूर्ति. लोग इस मंदिर को बुढ़िया माता मंदिर (Budhiya Mata Temple) के नाम से जानते हैं. इस मंदिर की यह मान्यता है कि जिसने भी यहां झोली फैलाया है. वह कभी खाली हाथ वापस नहीं लौटा.

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बुढ़िया माता मंदिर

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Published : Oct 12, 2021, 3:18 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 5:47 PM IST

हजारीबाग: पूरे देश में नवरात्र उत्साह उमंग के साथ मनाया जा रहा है. आदि शक्ति मां दुर्गा की आराधना हर एक ओर हो रही है. मां दुर्गा के अनेकों रूप हैं. कहीं मां ज्योति के रूप में पुजी जाती हैं. जिसे ज्वाला देवी माता कहा जाता है, तो कहीं माता की आंख की पूजा होती है, जिसे नैना देवी कहा जाता है. कहीं मां के चरण की पूजा होती है. जिसे तारापीठ के नाम से जाना जाता है.

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हजारीबाग के सुदूरवर्ती इचाक में मां की निराकार रूप की पूजा होती है. जहां ना तो पिंडी है ना तो कोई मूर्ति. लोग इस मंदिर को बुढ़िया माता मंदिर (Budhiya Mata Temple) के नाम से जानते हैं. इस मंदिर की यह मान्यता है कि जिसने भी यहां झोली फैलाया है और सच्चे मन से मां से मांगा है तो मां उसकी मुरादें पूरी कर देती हैं, उसकी झोली भर देती है.

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बूढ़िया माता मंदिर में पिंडी की होती है पूजा

आदि शक्ति मां दुर्गा के कई रूप हैं. कहीं मां की प्रतिमा की पूजा होती है, तो कहीं पिंडी की पूजा होती है. हजारीबाग में बुढ़िया माता मंदिर में मां की निराकार रूप की पूजा होती है. यहां दूरदराज से भी लोग पूजा अर्चना करने खींचे चले आते हैं. जो भी भक्त मां से मांगता है उसकी मुरादें मां पूरी करती हैं. जिले के इचाक प्रखंड के बनस टांड़ में बुढ़िया माता मंदिर अवस्थित है. नवरात्र के समय इस मंदिर में अलग परंपरा से पूजा होती है. जो अनोखा है. नवरात्रा में यहां पहर दिन पूजा होती है. लेकिन सप्तमी के दिन मां को सिंदूर चढ़ाया जाता है. सिंदूर चढ़ाने के लिए लोग दूरदराज से आते हैं.

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1668 में इचाक में फैली हैजा महामारी

बुढ़िया माता मंदिर में दीवार पर ही आकृति उभरी हुई है. उसी पर सिंदूर लगाने की प्रथा है. मंदिर के मुख्य पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर कि पौराणिक कहानी है. कहा जाता है कि 1668 में इचाक में हैजा महामारी के रूप में फैल गई थी. उस वक्त एक बूढ़ी माता इचाक बाजार में दिखी. इस बीमारी को दूर करने के लिए उन्होंने मिट्टी दी और उसे गांव से दूर रखने को कहा. कुछ देर बाद माता वहां से गायब हो गई और धीरे-धीरे महामारी भी खत्म हो गई. माता की दी हुई मिट्टी ने दिआड का रूप ले लिया. जिसकी सालों से पूजा हो रही है.

मां की पूजा करती महिला
मां भक्तों को नहीं करतीं निराश


ऐसी मान्यता है कि बुढ़िया माता सभी की मुरादें पूरी करती हैं. जो भी मां के दरबार में सच्चे मन से माथा टेकता है, मां उसकी झोली खुशियों से भर देती हैं. यहां राज्य ही नहीं देश के कोने-कोने से भक्त पहुंचते हैं. भक्त भी कहते हैं कि हमने जब भी यहां सच्चे मन से कुछ मांगा है, मां ने हमें अपना आशीर्वाद दिया है. इस कारण हम जब भी हजारीबाग आते हैं, तो मां के दरबार में जरूर पहुंचते हैं. वहीं एक महिला बताती हैं कि मैं आज पहली बार मंदिर आई हूं. मुझे इस मंदिर के बारे में जानकारी हुई कि यहां मांगी हुई मुरादें पूरी होती है. मां के दरबार में मै मुरादें मांगने आई हूं. मुझे विश्वास है कि मां मेरी भी झोली भर देंगी.

पूजा करते भक्त

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भक्तों में मां के प्रति आस्था

वहीं एक भक्त ने बताया कि मुझे आज नौकरी भी मिली है तो मां के आशीर्वाद से. मैं जीवन से हताश हो गया था. मां से मैंने नौकरी मांगी थी और उसी दौरान मेरी सरकारी नौकरी लग गई. ऐसे में मैं जब भी यहां आता हूं, तो माता के दरबार में हाजिरी लगाता हूं. यह माता सबकी मनोकामना पूरी करती हैं.

Last Updated : Oct 12, 2021, 5:47 PM IST

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