हजारीबागः बुनियादी सुविधा में पेयजल पहला स्थान रखता है. जब पेयजल के लिए भी गांव के लोगों को जद्दोजहद करना पड़े तो समझा जा सकता है कि यहां परिस्थिति विकट है. कछ ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहे हैं, हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के मुरुमातु गांव (Murumatu Village) के लोग. तीन पीढ़ियां से इस गांव के महिलाएं पीने का पानी लेने के लिए दूर नदी जाती हैं और चुआं से पानी निकालने में आधी जिंदगी निकाल देती हैं.
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सरकार ने विकास योजनाओं को लेकर कई घोषणा की हैं. वहीं यह भी वादा किया गया की मूलभूत सुविधा हर एक व्यक्ति को दिया जाएगा. लेकिन हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर दूर मुरुमातु गांव साफ पेयजल से महरूम (Drinking Water Problem) हैं. ग्रामीणों को पेयजल के लिए भी जद्दोजहद करना पड़ रहा है. पानी के लिए उन्हें 1 किलोमीटर दूर जंगलों में जाना पड़ रहा है.
दुश्वारियों का सिलसिला एक-दो दिन का नहीं, बल्कि तीन पीढ़ियों से चली आ रही है. महिलाएं सुबह सबसे पहले पानी लाती हैं और फिर घर का काम करती हैं. उनका कहना है कि हमारी सास और उनकी भी मां भी यही काम करती आई हैं और अब हम भी यही कर रहे हैं.
किसी ने नहीं सुनी गुहार
ग्रामीणों ने स्थानीय मुखिया से लेकर सांसद, विधायक तक को गुहार लगाई, पर किसी ने भी इस गांव में एक बोरिंग भी नहीं कराया. उनका यह भी कहना है कि हमारे गांव से महज 2 किलोमीटर पर प्रखंड मुख्यालय है, वहां भी अर्जी दी गई, पर किसी ने भी हमारी बातों को नहीं सुना. ऐसे में हम लोग बेबस होकर नदी का पानी ही वर्षों से पीते आ रहे हैं. बरसात के मौसम में नदी विकराल हो जाती है, फिर भी पीने के लिए तो पानी चाहिए ही. इसलिए ग्रामीण महिलाएं जान जोखिम में डालकर नदी से पानी भर लाती हैं.
ग्रामीणों से बातचीत करते संवाददाता गौरव प्रकाश प्रधानमंत्री आदर्श गांव है, पर सुविधा नहीं
गांव के युवा कहते हैं यह गांव प्रधानमंत्री आदर्श गांव (Prime Minister Model Village) हैं, जहां 1500 लोग रहते हैं लगभग 700 लोग इसी चुआं पर सालों भर निर्भर हैं. गांव की दूसरी छोर पर एक चापाकल और सोलर जलमीनार बनाया गया है, वो मीनार भी सालभर से खराब है. ऐसे में एक चापाकल से एक बस्ती अपनी प्यास बुझाती है, पर हमारे पास सिर्फ एक चुआं है, जिससे हम अपनी प्यास बुझाते हैं.
नदी से पानी ले जातीं ग्रामीण महिलाएं इसे भी पढ़ें- सुरक्षित पेयजल तक पहुंच, डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की रिपोर्ट
पीढ़ी-दर-पीढ़ी पेयजल समस्या बरकरार
कुछ दिन पहले शादी करके आई ग्रामीण महिला बताती हैं कि हमारे मायके में नल से पानी आता है. हम लोग कभी-भी पानी लाने के लिए घर से बाहर नहीं निकले. लेकिन ससुराल आकर मुझे पानी नदी से लाना पड़ रहा है. हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द यहां पर बोरिंग किया जाए, पीने के पानी की व्यवस्था की जाए, नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ी भी नदी से ही पानी लाने को विवश होंगे.
आजादी के बाद से लेकर अब तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने गांव में पीने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं करा पाए. अब देखना होगा कि प्रशासन कब तक इस गांव पर मेहर दिखाती है और गांव की प्यास मिटाने के लिए कारगर कदम उठाती है.