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बिरहोर जनजाति का विलुप्त होता पुरातन घर, सरकार ने दे दिया पक्का मकान

बिरहोर जनजाति एक ऐसा ही समुदाय है जो मुख्य रूप से झारखंड के कोडरमा, चतरा, रांची और हजारीबाग जिले में बसे हुए हैं. बिरहोर जनजाति जहां सामूहिक रुप में रहते हैं उसे 'टंडा' कहा जाता है और जिस घर में ये लोग निवास करते हैं उसे कुंबा कहते हैं. लेकिन इन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार की कोशिश के बाद कुंबा विलुप्ति के कगार पर है.

archaic house kumba of Birhor tribe
बिरहोर जनजाति का विलुप्त होता पुरातन घ

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Published : Jun 30, 2020, 1:25 AM IST

Updated : Jun 30, 2020, 3:25 PM IST

हजारीबाग: विलुप्त होती जनजाति बिरहोर को संरक्षित करने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है. इसी क्रम में एक्शन प्लान भी बनाया गया है. जिसके तहत बिरहोर को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा, घर और पेयजल उपलब्ध कराना है. यहां तक कि उन्हें रोजगार से भी जोड़ना है. जिसके फलस्वरूप आज ये लोग पक्के मकान में रह रहे हैं. बता दें कि बिरहोर जनजाति के लोग किसी जमाने में कुंबा में रहा करते थे, लेकिन आज यह कुंबा विलुप्त होता जा रहा है. क्योंकि उसकी जगह सरकार के दिए हुए पक्के मकान ने ले ली है. आज हम आपको बताएंगे बिरहोरों के पुरातन घर कुंबा के बारे में.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

हजारीबाग के चौपारण प्रखंड में चोरदाहा बिरहोर टंडा है. टंडा उस जगह को बोलते हैं जहा बिरहोर सामूहिक रुप से रहते हैं. तो यहां अब लगभग 20 बिरहोर परिवार रहते हैं. इनके रहने के लिए अब जिला प्रशासन ने पक्के घर की व्यवस्था कर दी है. बिरहोर जनजाति प्रकृति से सबसे नजदीक माने जाते हैं. इस कारण उन्हें प्रकृति के बीच में ही बसाया जाता है. जंगल हरे-भरे इलाकों के बीच उनका टंडा बनाया जाता है. पहले यह मट्टी, घास, बांस से बनाए हुए छोटे-छोटे गोलाकार कमरा बनाते हैं. जिसे कुंबा कहा जाता था.

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अब कुंबा विलुप्ती की कगार पर है. वहीं आज भी चोरदाहा के पास बिरहोर जनजाति अपने रहने के लिए कुंबा बनाए हुए हैं. अब भी चोरदाहा के पास 2 कुंबा देखने को मिलता है. जिले के पत्रकार कहते हैं कि यह उनके प्रकृति से लगाव का प्रतीक है. घर रहने के बावजूद वह कुंबा बनाए हैं, जिसमें कभी-कभार वह रहा करते हैं.

कुंबा क्या है ?

कुंबा एक प्रकार का घर होता है, जिसमें बिरहोर जनजाति के लोग रहते हैं. यह प्राय: ऊंचाई क्षेत्र में बनाया जाता है. जहां पानी का जमाव ना हो. इसे बनाने के लिए घास, पत्ता और डंडे की जरूरत होती है. सबसे बड़ी बात है कि बरसात के दिनों में इसमें पानी भी नहीं चुता है. बता दें कि जहां कई कुंबा होते हैं उस जगह को 'टोला' कहा जाता है, और टोला से 'टंडा' बनता था. आज टंडा तो है लेकिन 'कुंबा' गायब हो गया है. स्थानीय संतोष बिरहोर बताते हैं कि इसके अंदर हम लोग रहते हैं. खाना भी बनाते हैं और सोते भी हैं. यह हमारा पुरातन घर है.

कुंबा: बिरहोर जानजाति के लोगों का घर

यह बिरहोर का प्राकृतिक प्रेम ही है कि सरकारी सुविधा के बावजूद अपनी सभ्यता और संस्कृति को छोड़ नहीं रहे हैं. अब जरूरत है सरकार को इन्हें संरक्षित रखने की और इनकी सभ्यता और संस्कृति के बारे में लोगों को बताने की.

Last Updated : Jun 30, 2020, 3:25 PM IST

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