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कभी पीएम मोदी के मन में बसी थी हजारीबाग की खूबसूरत दीवार, आज हो गयी बदहाल

हजारीबाग में सोहराय और कोहबर कला से सजी दीवारें धीरे- धीरे बदहाल होती जा रही है. कभी अपनी खूबसरती के लिए मशहूर ये दीवार लोगों की उदासीनता की वजह अपना रंग खोता जा रहा है,

beautiful wall is getting worse
बदहाल दीवार

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Published : Feb 23, 2022, 1:49 PM IST

हजारीबाग: रेलवे स्टेशन की वो दिवारें जो कभी अपनी रंगीन कलाकृतियों के लिए मशहूर था. सोहराय और कोहबर कला से सजे ये दीवार झारखंड की संस्कृति को इतनी बखूबी से वर्णन कर रहे थे कि पीएम मोदी भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में कलाकृति को लेकर रेलवे स्टेशन का जिक्र किया. लेकिन वहीं दीवार जो कभी सबका मन मोह रही थी आज बदहाली के कगार पर है.

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दीवारों से गायब हुई सुंदरता:हजारीबाग को सुंदर बनाने के लिए 7 से 8 साल पहले तत्कालीन सीआरपीएफ 22 बटालियन के कमांडेंट मुन्ना सिंह ने झील टू हिल कार्यक्रम के तहत शहर की दीवारों को सोहराय कला और कोहबर कला से सजाने का मुहिम शुरू किया था. उनके इस अभियान को जिला प्रसासन का भी साथ मिला और देखते शहर के अधिकांश दीवारों को खूबसूरत पेंटिंग से सजा दिया गया. इन दीवारों की खूबसूरती इतनी मशहूर हुई की पीएम मोदी ने भी इसकी प्रशंसा की थी. लेकिन गंदगी और पेंटिंग झड़ जाने की वजह से दीवार फिर से अपने पुराने रूप में लौट गया है. जर्जरता और बदहाली ने इन दीवारों से उसकी सुंदरता छिन ली है.

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फीका पड़ गया शहर को सजाने की मुहिम:बडे़ धूमधाम से शुरू की गई शहर को सजाने की मुहिम समय के साथ फीका पड़ गया. लोगों की उदासीनता और प्रशासन की बेरूखी से ये मुहिम शहर से गायब होती गई. सीआरपीएफ कमांडेंट मुन्ना सिंह कहते हैं कि जब 2015 में लोग यहां आया करते थे तो यहां की दीवारों पेड़ पौधों का जिक्र किया करते थे. जरूरत है फिर से समाज की हर एक तबके को आगे आकर इस मुहिम को शुरू करने की ताकि जिला सुंदर और आकर्षक लगे.

कोहबर कला से सजी दीवार

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स्थानीय लोगों की गलती: हजारीबाग के वरिष्ठ पत्रकार मुरारी सिंह कहते हैं कि मुन्ना सिंह ने उत्प्रेरक का काम किया. उनका मकसद था हजारीबाग सुंदर हो. उनके मकसद को यहां के प्रशासन ने भी गति देने का काम किया. लेकिन हम लोगों की गलती है कि हम लोगों ने उनकी मुहिम को उनके जाने के बाद छोड़ दिया.फिर हजारीबाग की दीवार बेजान हो गई और दीवार गंदे दिख रहे हैं.पद्मश्री बुलु इमाम जिन्होंने सोहराय कला को नई पहचान दी और कला को गांव से विदेशों तक ले गए. उनका कहना है कि सड़क पर ही नहीं यह कला से जुड़ी प्रदर्शनी विश्व के कोने-कोने में लगे. जो इसके सुंदरता की बखान करता है. जरूरत है आम लोगों को भी इस कला को आगे बढ़ाने की.

हजारीबाग की बदहाल दीवार

बुलु इमाम के वंशज बढ़ा रहे हैं सोहराय कला:सोहराई कला को अब पद्मश्री बुलु इमाम के वंशज आगे बढ़ा रहे हैं. उनके बेटे जस्टिन इमाम और पुत्रवधू अलका इमाम तीसरी पीढ़ी तक इस कला को ले जाने के लिए कोशिश कर रही है. उनका भी कहना है कि सोहराई 8 से 10 तरह का होता हैं. लेकिन अब सोहराई कला के साथ लोग अनजाने में ही सही लेकिन गलत कर रहे हैं. सोहराई में प्राकृतिक रंग का उपयोग होता है. लेकिन लोग अलग-अलग तरह के रंग उपयोग कर रहे हैं जो इसकी सुंदरता को कम कर रहा है.


फिर से मुहिम शुरू करने की जरूरत:आज से 10 साल पहले शायद ही ऐसा कोई दीवार था जो आकर्षक नहीं लगता था .यहां से गुजरने वाले परदेसी भी इस दीवार के बारे में जिक्र किया करते थे. सरकारी और निजी दोनों दीवारों पर खूबसूरती दिखती थी. स्थानीय लोग आपस में चंदा करके भी दीवारों को सजाते थे. लेकिन समय बीतने के साथ-साथ यहां के लोग भुलते चले गए. जिस शहर ने दूसरे शहर को पाठ पढ़ाया उसी शहर का दीवार अब वीरान हो रहा है. यहां के लोग भी कहते हैं कि हमें फिर से मुहिम शुरू करने की जरूरत है.

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