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भीख मांगकर गुजारा कर रहे लोगों को हुई परेशानी, सामाजिक कार्यकर्ता ने उठाया मामला - People living by begging got trouble in giridh

लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों के साथ-साथ उन गरीबों पर आफत आन पड़ी है जिनकी जिंदगी भीख मांग कर हीगुजर रही थी. ऐसा ही दो दर्जन परिवार गिरिडीह शहर से सटे एक गांव में मिला है. उनमें से बहुत से लोगों से पास तो राशन कार्ड तक भी नहीं है.

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ग्रामीण महिलाएं

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Published : Apr 22, 2020, 8:57 PM IST

गिरिडीह: शहर से सटे भलसुनिया गांव के नजदीक रहनेवाले लगभग दो दर्जन परिवार के समक्ष अनाज के लाले पड़ गए हैं. इनकी जिंदगी कष्टदायी हो गयी. कई परिवार किसी तरह माड़ पीकर अपनी जिंदगी काट रहे हैं. बताया जाता है कि गिरिडीह महाविद्यालय के पीछे भलसुमिया गांव है, इस गांव में ज्यादातर आदिवासी परिवार रहते हैं. इनमें से कई लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं तो कई परिवार भीख मांगकर ही गुजारा करते हैं. गांव के जितने भी परिवार हैं उनमें से पांच-छह लोगों के पास ही राशन कार्ड है.

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इस गांव में पहुंचने पर ग्रामीणों ने अपना दर्द बताया. ग्रामीणों ने बताया की लॉकडाउन के बाद से दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. गांव में कई परिवार ऐसे हैं जो भीख मांगकर अपना व अपने घरवालों का पेट पालते हैं. ऐसे लोगों भी घर से निकल नहीं पा रहे हैं. बताया कि जब लॉकडाउन हुआ तो स्थानीय मुखिया ने पांच-पांच किलो चावल दिया था. इसके बाद कुछ लोग आए तो एक दिन पूड़ी-सब्जी दी गयी. एक दिन खिचड़ी भी मिल गया. इसके बाद उसी चावल को थोड़ा-थोड़ा करके माड़-भात बनाया गया. बताया कि जिन लोगों को राशन मिला था उन्हें कुछ कम परेशानी है. एक परिवार ने बताया कि डेगची में चावल कम व पानी ज्यादा डालते हैं ताकि माड़ ज्यादा मिल सके और उसमें नमक डालकर पी सके.

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इस मामले की जानकारी जब ईटीवी भारत को मिली तो इससे सामाजिक कार्यकर्ता सह यूथ फाउंडेशन के आशुतोष तिवारी को अवगत कराया गया. जानकारी के बाद आशुतोष व बाद में जेएमएम के लोग भी पहुंचे और अपने स्तर से अनाज मुहैया कराया. हालांकि जो अनाज मिला है उससे इन गरीबों का पेट कुछेक दिन ही भर सकता. यूथ फाउंडेशन के आशुतोष बताते हैं कि इस गांव में ज्यादातर बुजुर्ग परिवार ही है. एक युवती तो आंख से भी नहीं देख सकती. इन सभी का कहना था कि उनके पास अनाज नहीं है. बताया कि अभी तो जो हो सका उनके द्वारा मदद कर दी गयी है लेकिन इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.

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