गिरिडीह: शहर से लगभग 100 किमी दूरी पर स्थित है गावां प्रखंड का जमडार पंचायत. कभी अपराधियों और उग्रवादियों का गढ़ के तौर पर विख्यात यह इलाका कुछ वर्ष पहले से अभ्रख (माइका) के अवैध खनन के तौर पर अपनी पहचान बना चुका था. लेकिन आज इस पंचायत की पहचान ब्रिटेन के प्रसिद्ध अवार्ड डायना से सम्मानित हो चुकी चंपा कुमारी बन गई है.
मुफलिसी ने बच्चों को बनाया मजदूररोजगार का पर्याप्त साधन नहीं होने के कारण गावां प्रखंड के इस इलाके के लोग जान जोखिम में डालकर माइका का अवैध खनन करते. वहीं गरीब घरों के बच्चे यहां की पहाड़ियों से माइका का अवशेष ( ढिबरा ) चुनकर बेचते. इन अवशेषों को खरीदने वाले माफिया इसे गिरिडीह शहर के उन फैक्ट्रियों में भेजकर मालामाल हो रहे थे, जहां इन अवैध माइका को वैध करने का काम किया जाता था. माफिया की चांदी कटती, लेकिन इस खनन में जानेवाले गरीब परिवार के बच्चों की जिंदगी में अंधेरा छा रहा था. इसी पंचायत में रहनेवाले महेंद्र ठाकुर का परिवार भी ढिबरा चुनकर किसी तरह दो जून की रोटी की व्यवस्था कर रहा था. मुफलिसी में जी रहे महेंद्र के घर के बच्चे भी मजदूरी को मजबूर थे. इसी महेंद्र की बिटिया चंपा कुमारी भी बाल मजदूरी कर रही थी. ढिबरा को चुनना और उसे तराशने के बाद बेचने का काम करती थी.
चंपा कुमारी से बातचीत करते संवाददाता अमरनाथ सिन्हा ये भी पढ़ें-कभी की थी खुदकुशी की कोशिश, अब बचा रही सैकड़ों लोगों की जान
कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन ने दी नई राह
इसी दौरान इस उग्रवाद प्रभावित इलाके में कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के कार्यकर्ता बचपन बचाओ अभियान के तहत इलाके में घूमने लगे. इसी संस्था के कार्यकर्ताओं की नजर चंपा पर पड़ी. काफी मुश्किल से चंपा के परिजनों को समझाया गया और उसका दाखिला स्कूल में कराया गया. इस बीच चंपा फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भी वह भाग लेने लगी और मजदूरी कर रहे बच्चों को स्कूल से जोड़ने लगी.
बाल विवाह को रोका तो हुआ विरोध
बचपन बचाओ अभियान से जुड़ चुकी चंपा ने बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाना शुरू किया. दो बाल विवाह को भी रोका. जिसके बाद उसे विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि बाद में लोग चंपा के उद्देश्य को समझने लगे.
ये भी पढ़ें-कृषि के क्षेत्र में मिसाल पेश कर रही करमी देवी, महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर
अवार्ड मिलने से खुश हुए नाराज लोग
चंपा बताती हैं कि डायना अवार्ड से सम्मानित होने की खबर जैसे ही उसके गांव के लोगों को मिली तो हर कोई खुश हो गया. जिन लोगों ने कभी उसका विरोध किया था, वे खुश दिखे. चंपा बताती हैं कि काफी कठनाइयों को झेलते हुए उसने इस अभियान को अपने इलाके में गति दी है.
टीचर बनने की तमन्ना
चंपा आज भी गरीबी से जूझ रही है. डायना अवार्ड के साथ-साथ झारखंड सरकार से भी सम्मान पा चुकी यह बाला और उसका पूरा परिवार आर्थिक तंगी से गुजर बसर कर रहा है. कच्चे और छोटे-छोटे कमरे में ही चंपा अपने परिजनों के साथ रहती है. गरीबी के बावजूद उसके हौसले बुलंद हैं. वो कहती हैं कि वह बड़ा अधिकारी नहीं, बल्कि शिक्षिका बनना चाहती हैं, ताकि हर वक्त बच्चों को वह खुशी दे सके.
ये भी पढ़ें-महिला दिवस विशेष: बुलंद हौसला और संघर्ष ने इन्हें बनाया अधिकारी
फाउंडेशन के सदस्य भी हैं खुश
इधर, चंपा को मिली इस उपलब्धि से कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के मेंबर भी काफी खुश दिखते हैं. फाउंडेशन के महेश, मुकेश तिवारी और संदीप कुमार कहते हैं कि चंपा में प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई. पढ़ाई के साथ-साथ गीत, संगीत और नृत्य में भी पारंगत है.