दुमका: केंद्र हो या राज्य सरकार दोनों की योजना महिलाओं में हुनर विकसित कर उसे आत्मनिर्भर बनाने की है. इस पर काम चल रहा है. सरकार की बड़ी राशि खर्च हो रही है लेकिन कुछ त्रुटियों की वजह से योजना का लाभ सही ढंग से जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता है. इसका उदाहरण दुमका के जामा प्रखंड के भैरवपुर गांव में देखने को मिला है. यहां महिलाओं को स्कूल ड्रेस तैयार करने के काम से जोड़ा गया है लेकिन उन्हें कपड़ा सिलने की ट्रेनिंग मिली पर कटिंग करना नहीं सिखाया गया. इसके साथ ही कई उपकरण भी महीनों से खराब हैं उसे देखने वाला कोई नहीं है.
क्या है पूरा मामला
दुमका के जामा प्रखंड के भैरवपुर गांव में 2018 में तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ग्रामीण महिलाओं को हुनरमंद बनाने और स्वरोजगार से जोड़ने की स्कूल ड्रेस निर्माण योजना का शुरुआत की थी. इस पर लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए. इसके तहत उन्हें आधुनिक सिलाई मशीन उपलब्ध कराए गए. योजना थी कपड़े की कटाई - सिलाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना लेकिन यह योजना सही ढंग से जमीन पर नहीं उतर पा रहा है.
आधी अधूरी मिली ट्रेनिंग
सरकारी मशीनरी के कामकाज का अनोखा तरीका इस योजना में देखने को मिला. जब महिलाओं को कपड़ा सिलने के काम से जोड़ा जाना था, पहले उनका प्रशिक्षण हुआ. आश्चर्य की बात यह है कि उन्हें सिर्फ सिलाई करने का प्रशिक्षण दिया गया लेकिन कपड़े की कटिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई. अभी महिलाओं को सरकारी स्कूल के बच्चों के ड्रेस सिलने का काम दिया गया है लेकिन कपड़ा जब इनके पास आता है तो सरकारी स्तर पर दुसरी जगह इसकी कटिंग के लिए भेजा जाता है. वहां से कटिंग होकर जब आता है तब फिर इसे वे सिलते हैं. ऐसे में काफी समय निकल जाता है. वर्तमान में इनके पास कटिंग किया हुआ कपड़ा नहीं आने की वजह से इन्हें काम नहीं है. इसके साथ ही कटिंग इन महिलाओं के मनोनुकूल नहीं रहता. जैसे भी कपड़ा कटिंग होकर आता है उसे ही तैयार करना इनकी बाध्यता होती है.
कई मशीनें हैं खराब