दुमका: झारखंड की उपराजधानी दुमका के शिकारीपाड़ा में मंदिरों का गांव मलूटी है. यहां 400 से 500 साल पुराने एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. पहले मंदिरों की संख्या 108 थी, लेकिन धीरे-धीरे रखरखाव के अभाव में ये खत्म होते गए. हालांकि अब जो मंदिर शेष रह गए हैं, उसके लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारें काफी गंभीर है और इसका संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम तेजी से चल रहा है. टेराकोटा पद्धति से बने इन मंदिरों की ख्याति अब दूर-दूर तक फैल चुकी है.
जानें क्या है मंदिरों का इतिहास
इन मंदिरों के निर्माण का बहुत ज्यादा लिखित इतिहास नहीं है, लेकिन जानकारों के मुताबिक बीरभूम से सटे इलाकों के शासक राजा बसंत राय और उनके वंशजों ने इन मंदिरों के निर्माण 1690 से 1840 के बीच यानि 150 सालों में कराया था. वहीं, मलूटी में लगे झारखंड सरकार के पर्यटन विभाग के साइनबोर्ड के मुताबिक, मलूटी गांव बंगाल के मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करता था. इन्हीं लोगों ने इस मंदिर का निर्माण 17 वीं सदी में कराया. यहां टेराकोटा पद्धति से 108 मंदिरों का निर्माण किया गया.
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हालांकि, वक्त के साथ मंदिर कम होते गए और अब 72 मंदिर शेष हैं. इनमें से 58 मंदिर भगवान शिव के हैं. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. शेष मंदिर अन्य देवी देवताओ के हैं. इन मंदिरों में काफी सुंदर नक्काशी की गई है. अधिकांश मंदिरों में रामायण और महाभारत की कथा को मिट्टी से निर्मित मूर्तियों के जरिए दिखाया गया है. मंदिरों की ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक है. इसके निर्माण में छोटे-छोटे पतले आकार के खूबसूरत ईंट का प्रयोग चूना सुरकी के गारे ( लेप ) के साथ किया गया है.
मंदिरों के धार्मिक महत्व पर एक नजर
मौजूदा 72 मंदिर में 58 मंदिर भगवान शिव के हैं, जिनमें शिवलिंग स्थापित है. इसलिए इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. यहां का मुख्य मंदिर मां मौलिक्षा का है. मां मौलिक्षा को मां तारा की बड़ी बहन माना जाता है. इसका सबूत इस बात से मिलता है कि तारापीठ मंदिर भी यहां से महज 15 किलोमीटर दूर पर स्थित है. कहते हैं मां तारा के अनन्य भक्त साधक वामाखेपा भी पहले यहीं साधना करते थे. इसके बाद उन्होंने अपनी साधना भूमि मां तारा के यहां तारापीठ में बना ली, जो भक्त तारापीठ आते हैं वो यहां आना नहीं भूलते.