दुमका: शिकारीपाड़ा प्रखंड के मलूटी गांव में 400 साल पुराने मलूटी मंदिरों का जीर्णोद्धार का काम कई सालों से बंद है. जीर्णोद्धार का काम प्रधानमंत्री के शिलान्यास करने के बाद भी पूरा नहीं होने की वजह से स्थानीय लोगों में काफी मायूसी है. उनका कहना है कि अगर इन्हें संरक्षित औऱ सुसज्जित किया जाए तो यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा. इसके साथ ही यहां रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पर्यटन के मानचित्र में यह पूरे देश में अपना विशिष्ट स्थान बना पाएगा.
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जीर्णोद्धार में आ रही अड़चनों को किजा जाएगा दूर:मलूटी के मंदिरों का जीर्णोद्धार में देरी पर झारखंड सरकार के पर्यटन मंत्री हफीजुल हसन की माने तो ये केंद्र सरकार की योजना है और वहीं से गाइड होता है. इसमें जो भी अड़चन आ रही है उसे जल्द दूर किया जाएगा और मंदिरों के संरक्षण का काम पूर्ण कराया जाएगा. पूरे मामले पर दुमका सांसद सुनील सोरेन ने भी कहा कि मलूटी के मंदिरों का काम जल्द पूरा होना चाहिए. इसमें रुकावट कहां है और इसे कैसे जल्द पूरा किया जाए इसे लेकर पर्यटन मंत्री से बात करूंगा.
मलूटी में 108 मंदिर :बता दें कि मलूटी गांव में स्थित इन मंदिरों का काफी ऐतिहासिक महत्व है. इतिहास के अनुसार 17वीं सदी में यह क्षेत्र मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करती थी और इसे मल्लूहाटी कहा जाता था. मल्ल राजा द्वारा इन मंदिरों का निर्माण कार्य शुरू हुआ जिसे आने वाली पीढ़ियों ने भी जारी रखा. वक्त बीतता गया और उचित संरक्षण और देखरेख के अभाव में ये मंदिर नष्ट होते गए. वर्तमान में मलूटी में 72 मंदिर शेष बचे हुए हैं. इन मंदिरों में 58 भगवान शिव के और अन्य मां दुर्गा भगवान विष्णु सहित कई देवी-देवताओं के हैं. यहां मां मौलिक्षा का भी मंदिर है जहां पूजा अर्चना करने दूर-दूर से लोग आते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां मौलिक्षा मां तारा की बड़ी बहन है. पश्चिम बंगाल का प्रसिद्ध तारापीठ मंदिर इस मलूटी ग्राम से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित है.
2015 में चर्चा में था ये मंदिर: उपेक्षा का दंश झेल रहे मलूटी के ये मंदिर उस वक्त चर्चा में आए थे जब दिल्ली में 26 जनवरी 2015 को गणतंत्र दिवस की झांकी में इसके प्रारूप को शामिल किया था और इस झांकी को पुरस्कृत भी किया गया था. उसी वर्ष 2 अक्टूबर 2015 को एक कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुमका आए थे. उन्होंने मलूटी के मंदिरों के जीर्णोद्धार के कार्य का ऑनलाइन शिलान्यास किया था . इसकी प्राक्कलित राशि लगभग 5 करोड़ थी. संरक्षित करने के कार्य का जिम्मा इंडियन ट्रस्ट ऑफ रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट नामक संस्थान को मिला. 2016-17 में काम शुरू भी हुआ लेकिन काम की गति काफी धीमी थी. कुछ मंदिरों के संरक्षण का काम हुआ भी. इसी दौरान 2020 में जब कोरोना काल आया उस वक्त जीर्णोद्धार का काम जो बंद हुआ हुआ वह अभी भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.