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दुमका की वो जगह जहां पांडवों ने गुजारा था वनवास, गुफा के अंदर आज भी मौजूद हैं कई कमरे! - jharkhand tourism

पांडवों का त्याग, सत्य और धर्म की राह पर चलना सभी को प्रेरणा देता है. धर्म के मार्ग पर चलने के कारण ही उन्हें वनवास झेलना पड़ा. इस वनवास के दौरान वे जहां-जहां गए वहां उनसे जुड़ी चीजें देख कर पौराणिक कथाओं पर विश्वास और पक्का हो जाता है. माना जाता है कि दुमका के जरमुंडी प्रखंड में पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ रुके थे. यहां उन्होंने कई दिन बिताए थे. इस दौरान उन्होंने यहां भगवान शिव का मंदिर भी बनवाया था जिसे अब पांडेश्वर नाथ मंदिर कहा जाता है.

Pandavas cave in Dumka
Pandavas cave in Dumka

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Published : Nov 9, 2021, 9:59 AM IST

दुमका:देश के पर्यटन नक्शे पर झारखंड अब भी बड़ा नाम नहीं है. हालांकि यहां कई ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहर हैं, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण झारखंड के कई पर्यटन स्थलों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं मिली है. उन्ही में से एक है जरमुंडी प्रखंड में पांडवों के द्वारा स्थापित पांडेश्वर नाथ मंदिर. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इसका निर्माण कराया था, लेकिन इसे जो प्रसिद्धि मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल पाई. स्थानीय लोग इसके विकास की मांग कर रहे हैं.



पांडवों ने स्थापित की थी पांडेश्वर नाथ मंदिर
दुमका जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर जरमुंडी प्रखंड के पंचायत में स्थित है पांडेश्वर नाथ मंदिर. धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में पांडवों को जब अज्ञातवास मिला तो कुछ दिनों तक वे यहां भी रुके थे. बरमासा पंचायत स्थित पहाड़ के ऊपर वे निवास करते थे. पांडवों ने यहां पूजा अर्चना के लिए एक शिवलिंग स्थापित किया था, जिसे पांडेश्वर नाथ कहा जाता है. यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मंदिर है. पांडवों द्वारा बरमासा पहाड़ के ऊपर एक गुफा भी बनाया गया था जो आज भी मौजूद है. गुफा के अंदर पत्थरों से बने कई कमरानुमा जगह हैं. कहा जाता है कि पांचों भाई द्रौपदी के संग इसी में निवास किया करते थे, साथ ही पहाड़ के नीचे और मंदिर के सामने छोटे-बड़े पांच तालाब हैं जिसमें पांडव स्नान किया करते थे.

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नहीं हो पाया पांडेश्वर नाथ मंदिर का सही विकास
इतनी धार्मिक और पौराणिक कथाओं को अपने में समेटे पांडेश्वर नाथ मंदिर का सही विकास आज तक नहीं हो पाया. इसकी ख्याति सिमट कर रह गई है. पास के इलाके के लोग पूजा अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं लेकिन दूरदराज के लोगों को इसकी कम ही जानकारी है. रंगरोगन और उचित देखभाल के अभाव में पांडेश्वर नाथ मंदिर जर्जर प्रतीत होता है.

बेशकीमती शिलाओं को देखने वाला कोई नहीं
इस मंदिर परिसर में आकर्षक आकृतियों के कई शिलायें भी हैं पर इसे देखने वाला कोई नहीं. खुले में सभी शिलाओं को छोड़ दिया गया है. मौसम की मार झेलते झेलते लगातार इनका क्षरण हो रहा है. मंदिर के पुरोहित, स्थानीय लोग और पंचायत के प्रतिनिधि सभी लोगों का कहना है कि यह मंदिर धार्मिक मान्यताओं का है, इसके बावजूद यहां जो विकास होना था वह आज तक नहीं हो पाया. जरमुंडी विधानसभा क्षेत्र से कई विधायक राज्य के मंत्री पद तक पहुंचे, लेकिन कोई विस्तृत योजना बनाकर इसका विकास नहीं हुआ. थोड़ा बहुत काम तो हुआ लेकिन वह इसे पर्यटन के मानचित्र में लाने में नाकाफी साबित हुई. लोगों का कहना है कि सरकार एक ब्लूप्रिंट बनाकर इसके जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण का कार्य पूर्ण कराएं ताकि इसकी ख्याति दूर-दूर तक पहुंचे ताकि लोग इसे देखने आएं. पर्यटन के मानचित्र में इसका भी स्थान हो.

सरकार अगर ध्यान दे तो बढ़ेगा रोजगार
पांडेश्वरनाथ मंदिर बासुकीनाथ और देवघर के बीचोंबीच स्थित है. लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष देवघर-बासुकीनाथ पहुंचते हैं. अगर इसका विकास सरकार करें और पर्यटकों के बीच इसका नाम हो तो निश्चित रूप से पांडेश्वरनाथ में लोग पूजा अर्चना के लिए पहुंचेंगे. लोगों के पहुंचने से इस क्षेत्र का भी विकास होगा और इससे रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे.

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