दुमका: झारखंड राज्य का संथालपरगना प्रमंडल जिसे काफी पिछड़ा माना जाता है. यहां खासतौर पर आदिवासी समाज की स्थिति अभी भी दयनीय है. ऐसे में एक आदिवासी संथाल समाज की एक महिला जिसने अपने मेहनत, संघर्ष, जुझारूपन से अपना एक अलग पहचान बनाई वह है निर्मला पुतुल मुर्मू. निर्मला पिछले दो दशक से साहित्य की सेवा कर रही है. वह लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में जुटी है. चार वर्ष पहले वह अपने पंचायत की मुखिया बनकर जनकल्याण का काम बखूबी कर रही है.
कौन हैं निर्मला पुतुल
दुमका के दुधानी गांव में एक आदिवासी संथाल परिवार में निर्मला का जन्म 1972 में हुआ. उनके पिता सिरिल मुर्मू पहले बच्चों को शिक्षा देते थे बाद में पूरी तरह से परम्परागत कृषि व्यवसाय से जुड़ गए. निर्मला पुतुल की शिक्षा दीक्षा दुमका में स्नातक तक हुई. पिछले दो दशकों से वह गांव-गांव जाकर लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, नशामुक्ति जैसे मुद्दे पर जागरूक करते आ रही है.
निर्मला बताती है कि गांव में जाकर लोगों को जागरूक करने में काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. लोगों की बुरी नजर हमेशा उसका पीछा करती थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और गांव में महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने के लिए जागरूक किया. उन्होंने महिलाओं को हमेशा इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह स्वालंबी बने ताकि पुरुषों के उत्पीड़न से बच सके. निर्मला कहती हैं कि दिन भर घर- घर, गांव-गांव घूमने के बाद शाम में जब वह घर लौटती थी तो दिन भर का जो अनुभव था इसे शब्दों में पिरोती हुई छंदबद्ध करती जो धीरे-धीरे कविता का रूप लेने लगी.