पलामू:इतिहास में नीलांबर पीतांबर को उतनी जगह नहीं मिली जितने वे इसके हकदार थे. आज भी नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या उपेक्षित है. यहां तक पहुंचते-पहुंचते सारी विकास योजनाएं ठप हो जाती हैं. यह इलाका अब नक्सल हिंसा के लिए कुख्यात है और बूढापहाड़ के नजदीक है. चेमो सान्या निर्माधीन मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आता है. आज पूरा इलाका नीलांबर पीतांबर की धरती को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है.
सिर्फ शॉल ओढ़ाने और पगड़ीपोशी के लिए परिजनों को किया जाता है याद
चेमो सान्या में आज भी वह इमली का पेड़ और टटरी मौजूद है, जहां नीलांबर पीतांबर आजादी की लड़ाई की योजना बनाते थे. आज उस जगह पर हर वर्ष गांव के लोग बड़ा समारोह आयोजित करते हैं, लेकिन इसमें कोई भी सरकारी अधिकारी या तंत्र भाग नहीं लेता है. नीलांबर पीतांबर के आठवी पीढ़ी देवनाथ सिंह और उनके भाई आज भी गांव में कच्चे मकानों में रहते हैं. सरकारी समारोहों में उन्हें सिर्फ शॉल ओढ़ाने या पगड़ीपोशी के लिए याद किया जाता है. उन्हें सरकारी योजना का कोई लाभ तक नहीं मिलता. परिजन आज भी पारंपरिक खेती करते हैं और उसी पर निर्भर है. देवनाथ सिंह का कोई भी परिवार ग्रेजुएट नहीं है.
गांव पंहुचने से पहले ही दम तोड़ देती है विकास योजना
नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर. करीब 600 आबादी वाले इस गांव में विकास योजना पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं. गांव में पहुंचने के लिए तीन नदियों को पार करना पड़ता है. गांव में किसी भी व्यक्ति के पास पक्का मकान नहीं है ना ही किसी को सरकारी आवास योजना का लाभ मिला है. बूढ़ा पहाड़ के नजदीक होने के कारण गांव में सिर्फ और सिर्फ सुरक्षा बल के जवान ही पहुंचते हैं. गांव में कोई भी विधायक या बड़े अधिकारी नहीं जाते हैं.