दुमका: सरकार नक्सल प्रभावित इलाकों में विशेष कार्य योजना बनाकर विकास करने का दावा करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर दुमका-पाकुड़ जिला सीमा पर स्थित अतिनक्सल प्रभावित गोपीकंदर प्रखंड में एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कार्य बारह वर्षों से अधूरा है. इस अस्पताल की लागत साढ़े तीन करोड़ रुपये थी पर समय पर पूरा नहीं होने की वजह से लगभग एक करोड़ की राशि बढ़ गई.
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वहीं, इस मामले पर संज्ञान लेते हुए दुमका सांसद सुनील सोरेन ने इस पर गंभीरता दिखाई है. निर्माण कार्य में बरती जा रही लापरवाही पर उन्होंने कहा कि इतने लंबे समय से निर्माण होने से गुणवत्ता प्रभावित होती है. इसकी जांच कराने की बात कहते हुए सांसद ने इसे जल्द पूरा करवाने की बात कही है.
क्या कहते हैं सांसद
इस संबंध में दुमका सांसद सुनील सोरेन ने कहा कि निश्चित रूप से यह काफी बड़ी लापरवाही कही जा सकती है. उन्होंने कहा कि जंगली इलाके में जहां स्वास्थ्य व्यवस्था पिछड़ी हुई है वहां इस अस्पताल का पूर्ण न होना काफी गंभीर मामला है. उनका कहना है कि वह इसकी जांच करवाएंगे कि आखिरकार कहां चूक हुई है.
स्थानीय लोगों को हो रही है परेशानी
इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने स्थानीय लोगों से बातचीत की. लोगों ने निराशा से कहा कि बरसों से वो लोग देख रहे हैं कि यह अस्पताल बन रहा है लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ. उनका कहना है कि ग्रामीणों को काफी परेशानी होती है. मरीज की स्थिति अगर थोड़ी सी गंभीर हो जाती है तो सीधा उन्हें 50 किलोमीटर दूर दुमका जिला मुख्यालय और कभी पश्चिम बंगाल ले जाना पड़ता है.
सरकारी चिकित्सक भी हैं परेशान
इस अस्पताल के बनने का काम शुरू तो हुआ पर आज तक पूरा नहीं हुआ. गोपीकांदर प्रखंड की लगभग एक लाख जनता इलाज के लिए अभी एक छोटे से छह बेड वाले सीएचसी पर निर्भर है. इस प्रखंड के चिकित्सा प्रभारी डॉ विकास कुमार कहते हैं कि अभी जिस अस्पताल में इलाज किया जा रहा है उसकी हालत भी जर्जर है. उन्होंने कहा कि अगर निर्माणाधीन अस्पताल का काम पूरा हो जाता तो चिकित्सकों सहित आम लोगों को भी काफी सहूलियत होगी.