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'लाल' का गढ़ है निरसा, झारखंड बनने के बाद आज तक यहां नहीं खिला 'कमल'

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Published : Nov 5, 2019, 7:07 AM IST

निरसा विधानसभा क्षेत्र की पहचान राज्य में लालगढ़ के रूप में होती है. क्योंकि यहां की जनता ने ज्यादातर लाल झंडे की पार्टी को अपना प्रतिनिधित्व किया है. राज्य गठन के बाद सत्ताधारी बीजेपी इस सीट पर कभी भी चुनाव नहीं जीत पाई है.

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धनबाद: झारखंड और पश्चिम बंगाल के बार्डर पर बसा है निरसा विधानसभा क्षेत्र. निरसा विधानसभा सीट धनबाद जिले की महत्वपूर्ण सीटों में से एक है. निरसा हार्ड कोक भट्ठा के लिए जाना जाता है. इस इलाके में कोयले की तस्करी भी भारी मात्रा में होती है. इसके साथ ही मशहूर मैथन डैम भी निरसा विधानसभा क्षेत्र में आता है. दामोदर घाटी निगम और पंचैत दो महत्वपूर्ण हाइडल पावर प्लांट भी इसी क्षेत्र में हैं. ये दोनों पर्यटन के लिहाज से भी खास हैं. भले ही देश बीजेपी के भगवा रंग से रंगा हो लेकिन झारखंड का निरसा विधानसभा क्षेत्र लालगढ़ के नाम से जाना जाता है.

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मासस को मिली थी कड़ी टक्कर
इस विधानसभा चुनाव में मासस (मार्क्सवादी समन्वय समिति) ने इस बार फिर इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर रखा है. यह लाल झंडे का गढ़ माना जाता है, यहां से वर्तमान में अरूप चटर्जी विधायक हैं. यह मासस के टिकट पर चुनाव जीते हैं. इसके पहले उनके पिता गुरदास चटर्जी भी निरसा से विधायक रह चुके हैं.अरूप चटर्जी ने तीन बार निरसा की जनता का प्रतिनिधित्व किया है. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और मार्क्सवादी समन्वय समिति की कड़ी टक्कर हुई थी. इस बार भी मासस अपना गढ़ बचाने में सफल रही और अरूप चटर्जी लगभग 1200 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए थे.

उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने अरूप
1989 से लगातार तीन बार गुरदास चटर्जी निरसा से विधायक रहे. विधायक रहते ही साल 2000 में उनकी हत्या कर दी गई थी. जिसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में उनके बेटे अरूप चटर्जी पहली बार विधायक बने. फिर ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक नेता सुशांतो सेन गुप्ता की हत्या के बाद 2005 में उनकी पत्नी अपर्णा सेनगुप्ता यहां से विधायक बनी और वह राज्य सरकार में मंत्री भी रहीं. लेकिन उसके बाद हुए 2009 और 2014 विधानसभा चुनाव में अरूप चटर्जी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

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हार-जीत में था 1200 वोटों का अंतर
2014 विधानसभा चुनाव में उरूप चटर्जी को जहां 51581 मत मिले तो बीजेपी प्रत्याशी गणेश मिश्रा को 50546 वोट हासिल हुए. इस सीट से चुनाव में कुल 11 उम्मीदवार मैदान में खड़े थे. जिनमें से 8 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. इस सीट से जेएमएम, बीएसपी, कांग्रेस समेत कई बड़ी पार्टियों ने उम्मीदवार दिए थे फिर भी उन्हें यहां संतोषजनक मत नहीं मिल पाया. अगर अरूप चटर्जी और गणेश मिश्रा की उम्र की बात करें तो अरूप चटर्जी की उम्र लगभग 50 साल है तो वहीं गणेश मिश्रा अपने जीवन में 50 से भी ज्यादा बसंत देख चुके हैं.

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