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यहां 'आग के दरिया' में जीने को मजबूर हैं लोग, पिछले 100 साल से धधक रही है जमीन

झरिया में कोयला खदानों में लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से आग लगी हुई है. जिस आग पर आज तक काबू नहीं पाया गया. भूमिगत आग के कारण वहां पर रहने वाले लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं.

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Published : Feb 22, 2019, 6:03 PM IST

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धनबादः जिले के झरिया इलाके की भूमिगत आग कोई नई समस्या नहीं है. सौ साल से भी अधिक समय से यहां के लोग इससे जूझ रहे हैं. तमाम सरकारी दावों के बीच अब तक न ही आग पर पूरी तरह से काबू पाया गया है और न ही प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सका है.

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देश की कोयला राजधानी है धनबाद. लेकिन यहां पर झरिया में कोयला खदानों में लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से आग लगी हुई है. जिस आग पर आज तक काबू नहीं पाया गया. भूमिगत आग के कारण वहां पर रहने वाले लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं. मकान सहित लोग जमींदोज हो रहे हैं.

यहां सरकार के द्वारा 595 साइट्स का चयन किया गया है. जहां से लोगों को विस्थापित किया जाना था. जिसमें से अभी तक सभी साइट्स पर सर्वे का काम भी पूरा नहीं हो पाया है. धनबाद और बंगाल के रानीगंज इलाके के 21 साइट्स पर अभी भी सर्वे का काम नहीं हो पाया है. पुनर्वास पदाधिकारी का कहना है कि इन जगहों पर स्थानीय लोगों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है.

रैयत और अतिक्रमणकारियों को मिलाकर लगभग 1 लाख विस्थापित हैं. जिन्हें सरकार के द्वारा मकान का आवंटन किया जाना है. हालांकि अभी तक अतिक्रमणकारियों को मकान दिया जाएगा या नहीं इसकी स्थिति स्पष्ट नहीं है. बीच-बीच में इसे लेकर अलग-अलग बातें सामने आती रहती हैं. लेकिन रैयतों को भी अभी तक सरकार मकान उपलब्ध नहीं करा पाई है.

आपको बता दें कि 27 हजार रैयत विस्थापित होंगे. वहीं अतिक्रमणकारियों की संख्या 70 हजार के करीब है. जिसमें से मात्र 25 सौ लोगों को बेलगड़िया टाउनशिप में अभी तक मकान का आवंटन किया गया है. जबकि यह सारा कार्य 2021 तक सरकार को कर लेना है. जो कि कहीं से संभव नहीं दिखता है.

वहीं, झरिया इलाके में रहने वाले लोगों का आरोप है कि बीसीसीएल जानबूझकर आग को बढ़ावा दे रही है. ताकि लोग यहां से परेशान होकर खुद ही भाग जाए. उन्हें कोयला निकालने में आसानी हो. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वज लोग इसी जगह में रहते आए हैं. हम भी यही रहेंगे चाहे कुछ भी हो. क्योंकि दूसरी जगह जाने से हमारा रोजगार हमसे छिन जाएगा.

गौरतलब है कि 12 अगस्त 2009 को झरिया मास्टर प्लान की मंजूरी मिली थी. 12 वर्षों में यानी कि अगस्त 2021 तक इस सारे कार्यों को पूरा कर लिया जाना था. लेकिन आज 10 वर्ष बीत जाने के बाद मात्र 25 सौ लोगों को ही मकान का आवंटन हुआ है. ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि मात्र 2 सालों में यह सारा कार्य अब कैसे होगा.

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