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कोरोना काल में प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों का बुरा हाल, भूखे मरने की नौबत - कोरोना काल में शिक्षकों की स्तिथि काफी दयनीय

पांच सितंबर को देशभर में शिक्षक दिवस मनाई जा रही है. गुरु-शिष्य की परम्परा भारतीय संस्कृति की एक अहम और पवित्र हिस्सा है, लेकिन इस कोरोना काल ने अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षक वर्ग को भी काफी प्रभावित किया है. शिक्षकों के सम्मान में हर वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस शिक्षक दिवस भले ही शिक्षकों के सम्मान में चाहे जितने कसीदे पढ़े जाये लेकिन इस कोरोना काल में शिक्षकों की स्तिथि काफी दयनीय हो गयी है.

pathetic condition of private school dhanbad
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Published : Sep 5, 2020, 5:08 PM IST

धनबादः गुरु-शिष्य की परम्परा भारतीय संस्कृति की एक अहम और पवित्र हिस्सा है. जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता क्योंकि वे हमें इस खूबसूरत दुनिया में लेकर आते हैं लेकिन जीने का असली सलीका हमे शिक्षक ही सिखाते है और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. लेकिन इस कोरोना काल ने अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षक वर्ग को भी काफी प्रभावित किया है.

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शिक्षकों के सम्मान में हर वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस शिक्षक दिवस भले ही शिक्षकों के सम्मान में चाहे जितने कसीदे पढ़े जाये लेकिन इस कोरोना काल में शिक्षकों की स्तिथि काफी दयनीय हो गयी है. खासकर छोटे-छोटे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले लाखों शिक्षकों की जिंदगी इस कोरोना काल ने बदल कर रख दी है.

शिक्षकों के सामने खाने की दिक्कत

इस कोरोना काल ने प्राइवेट स्कुल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की स्थिति काफी दयनीय कर दी है, खासकर गली मुहल्ले में चलने वाले स्कूलों के शिक्षकों की स्तिथि तो और भी खराब हो गयी है. क्योंकि इन प्राइवेट स्कूलों में बड़े-बड़े कॉर्पोरेट स्कूलों की तरह बड़े घराने के बच्चे नहीं पढ़ते है और न ही मोटी मोटी फीस ली जाती है. दो चार सौ मासिक फीस लेकर ही इन स्कूलों में बच्चो को पढ़ाया जाता है और इन स्कूलों में मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग के परिवार के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. कोरोना काल में संक्रमण न फैले इसको लेकर स्कूलों को पिछले कई महीनो से बंद रखा गया है. बच्चो से गुलजार रहने वाले स्कूलों में अब सन्नाटा पसरा हुआ है. शिक्षक ऑनलाइन क्लास तो करवा रहे हैं लेकिन हर बच्चे के पास मोबाइल नहीं रहने के कारण वो भी संभव नहीं हो पा रहा है, जिस कारण स्कूलों में फीस भी नहीं आ रही है. प्रबंधन के सामने अब शिक्षकों को वेतन देने के भी लाले पड़ने लगे हैं. पिछले कुछ महीनो से आधा वेतन दिया जा रहा है पर अब वो भी संभव नहीं हो पा रहा है.

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इसमें कोई दो राय नहीं है की शिक्षक समाज और राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं. वे ऐसे मार्गदर्शक होते है जो अन्नत काल से ज्ञान के प्रकाश से समाज के अंधकार को मिटाते रहे हैं. किसी भी राष्ट्र की प्रगति शिक्षक के बिना अधूरी है लेकिन इस कोरोना काल ज्ञान का प्रकाश बाटने वाले शिक्षक भी दाने दाने के मोहताज होने लगे हैं. स्कूल बंद होने से छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होने की फिक्र सभी ने की परंतु इस महामारी ने शिक्षकों के जीवन को जितना अधिक प्रभावित किया है, उसकी तरफ शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो.

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