धनबाद: जिले के कतरास इलाके में विराजमान नीलकंठवासिनी मंदिर (Neelkanthvasini Temple) में मां काली की पूजा 900 वर्षों से होते आ रही है. लोग इस मंदिर को लिलोरी मंदिर के नाम से भी जानते हैं. यहां पर सभी धर्म समुदाय के लोग पहुंचते हैं और मां सबकी मनोकामना पूरी करती है. कतरास गढ़ के राजा के पूर्वजों के द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. जिसे कोयलांचल के लोग शक्तिपीठ भी कहते हैं.
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धनबाद मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी में अवस्थित मां नीलकंठवासिनी मंदिर में लगभग 900 वर्षों से अधिक समय से पूजा होते आ रही है. मंदिर में धनबाद के अलावा दूरदराज से भी काफी संख्या में लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. मां सबकी मुरादें भी पूरी करती हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी हराधन बनर्जी ने बताया कि हमारा 13 पीढ़ी यहां बीत चुका है. कतरास गढ़ के राजा के 16- 17 पीढ़ी के पहले के पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था.
कई राज्यों से लोग पूजा करने आते हैं नीलकंठवासिनी मंदिर
मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि इस मंदिर में कोयलांचल धनबाद के साथ-साथ पूरे झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा, यूपी, मुंबई और विदेशों से भी लोग पूजा करने के लिए आते हैं. उन्होंने बताया कि 900 वर्षों से यहां पर प्रतिदिन पूजा होती है और हर दिन बलि भी दी जाती है. यहां पूजा से संबंधित लगभग सभी खर्च राज परिवार ही वहन करता है. नवरात्रि के समय में यहां पर विशेष प्रकार के आयोजन किए जाते हैं. शाम की आरती में लगभग हजारों की भीड़ होती है. लेकिन कोरोना गाइडलाइन को देखते हुए इस साल संध्या आरती भी वर्जित है और बच्चों को भी आने पर रोक है.
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