धनबाद: कोयलांचल नगर निगम क्षेत्र के रंगिनीभीठा में कोड़ा आदिवासी समुदाय 4-5 पीढ़ी से रहते आ रहे हैं. इनका पेशा मिट्टी खोदकर तालाब और कुएं का निर्माण करना है. इसके अलावा यह समुदाय खेती का भी काम करता है. अभी तक इन पर आधुनिकता का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है.
इनके खान-पान में मुख्य रूप से तीतर, बगुला, कौआ, मैना, चुहा, नेवला और बेमौत नामक चींटी शामिल है. उनका कहना है कि इस चींटी की चटनी खाने से सर्दी, खांसी और बुखार नहीं होता, यह एक एंटीबायोटिक की तरह काम करती है.
इनकी परंपरा अपने आप में काफी धनी है. धार्मिक त्योहारों की बात करें तो सबसे पहले इनकी जबान में भेलवा फाड़ी नामक पूजा का जिक्र होता है. इसके अलावा सीमा पूजा और सरहुल पर्व का खास महत्व है. वहीं महुआ को ये अपनी हर पूजा और रीति-रिवाज में पहले भोग की तरह इस्तेमाल करते हैं. उनका कहना है कि इसके बिना उनकी पूजा और त्योहार अधूरे हैं.