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जवाहरलाल नेहरू के गले में माला डाल 20 साल तक भटकती रही बुधनी, जानें पूरी कहानी

झारखंड के धनबाद जिले स्थित पंचेत गांव में रहने वाली बुधनी कहानी जानने में आपको अटपटा जरूर लगेगा. लेकिन एक परंपरा की वजह से उसे गांव से 20 साल तक बाहर रहना पड़ा. बुधनी पंचेत डैम का उद्घाटन करने आए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के माला पहनाया था. वो माला उन्होंने बुधनी के गले में डाल दिया. जिसके बाद लोगों ने मान लिया कि बुधनी की उनसे शादी हो गई.

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Published : Mar 21, 2019, 8:07 AM IST

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ बुधनी (फाइल फोटो).

धनबाद: झारखंड के धनबाद की रहने वाली बुधनी मंझीयाइन की कहानी बेहद दिलचस्प है. इलाके में बुधनी की पहचान कथित रूप से 'नेहरू की पत्नी' के रूप में है. बुधनी की इस पहचान को सुन आप जानने के लिए उत्सुक होंगे कि ये कैसे हो सकता है. तो आइए हम आपको बताते हैं कि बुधनी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का कनेक्शन क्या है.

देखिए, ये स्पेशल रिपोर्ट.

कैमरे को देख आंगन से बाहर जाती यह बुजुर्ग महिला बुधनी मंझीयाइन है. इलाके में लोग बुधनी को कथित रूप से नेहरू की पत्नी के रूप में भी जानते हैं. दामोदर वैली कॉरपोरेशन में नौकरी करने वाली बुधनी को यह पहचान 6 दिसंबर 1959 को मिली थी.

जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पंचेत डैम का उद्घाटन करने आए तो उनके अचानक लिए गए एक फैसले से बुधनी इलाके में सेलिब्रिटी बन गई. जवाहर लाल नेहरू ने उस डैम का उद्घाटन बुधनी के हाथों करवाया. इसी दौरान बुधनी ने उन्हें फूलों की माला पहनाई. बस यहीं से कहानी ने दूसरा रुख ले लिया.

बुधनी के इस कदम ने उनकी जिंदगी में भूचाल ला दिया. परंपराओं की बेड़ियों में जकड़े समाज ने मान लिया कि बुधनी ने उन्हें माला पहनाकर उनसे शादी कर ली है. इसके बाद उन्हें समाज से बेदखल कर दिया गया.

बुधनी बहुत दिनों तक गायब रहीं. बात जब दिल्ली तक पहुंची को प्रशासन ने उन्हें ढूंढ निकाला और डीवीसी में नौकरी दी गई. इसी दौरान बुधनी ने शादी की और अब परिवार के साथ पंचेत में ही रह रही हैं. बुधनी अब पुरानी बातों को कुरेदना नहीं चाहती. बस इतना कहती है कि वह उस वक्त 16-17 साल की थी. अब कुछ भी याद नहीं है.बुधनी के साथ उनकी बेटी भी रहती है, वो भी इसके बारे में बात नहीं करना चाहती है. कैमरे को देख कुछ बताती है फिर कहती है, अब मत पूछिए.

इस पूरे घटनाक्रम के गवाह रहे रावण मांझी बताते हैं कि कैसे उसके बाद बुधनी चली गई थी. नेहरू की वजह से बुधनी की इलाके में अलग पहचान है. अब दूर-दूर से इसकी कहानी सुन लोग, उसे देखने आते हैं.

तमाम सामाजिक झंझावतों को भूल बुधनी रिटायरमेंट के बाद धनबाद से 60 किलोमीटर दूर पंचेत में परिवार के साथ जिंदगी व्यतीत कर रही है. उससे जुड़ी यादें डीवीसी कार्यालय में आज भी सहेज कर रखी गयी है.

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