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CCU में धनबाद की राजनीति के 'भीष्म पितामह' एके राय, लोग स्वस्थ होने की कर रहे कामना - सेंट्रल अस्पताल धनबाद

पूर्व सांसद एके राय धनबाद के सेंट्रल अस्पताल में भर्ती हैं. इस दौरान उनसे मिलने अस्पताल में कई लोग पहुंच रहे हैं. एके राय पहली बार वर्ष 1967 में विधायक बने थे. वहीं 1977 में सांसद बने थे.

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Published : Jul 19, 2019, 11:23 PM IST

धनबाद: कोयलांचल की राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले एके राय की स्थिति नाजुक है. वे धनबाद के सेंट्रल हॉस्पिटल के सीसीयू में भर्ती है. मजदूरों के साथ-साथ सभी पार्टी के नेतागण उन्हें देखने के लिए अस्पताल पहुंच रहे हैं.

जानकारी देते पूर्व विधायक आनंद महतो


अस्पताल में एके राय
एके राय ऐसे नेता हैं जिनका कोई भी राजनीतिक विरोधी नहीं है. वह सभी पार्टियों के साथ-साथ धनबाद के लोगों के सर्वमान्य नेता हैं. अगर कुछ अनहोनी होती है, तो धनबाद की राजनीति का एक अध्याय का अंत कहा जाएगा. एके राय तीन बार विधायक और तीन बार सांसद रह चुके हैं.


बांग्लादेश में हुआ जन्म
अरुण कुमार राय का जन्म 25 जून 1935 को राजशाही ( बांग्लादेश) में हुआ था. इनके पिता का नाम शिव चंद्र राय जो कोलकाता के प्रसिद्ध अधिवक्ता थे. भारत की आजादी के बाद वह पूरे परिवार के साथ कोलकाता शिफ्ट हो गए. मां रेणुका रानी भी स्वतंत्रता सेनानी थी. एके राय कोलकाता विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद धनबाद जिले के सिंदरी स्थित सिंदरी फर्टिलाइजर में नौकरी करने आए. उस समय सिंदरी फर्टिलाइजर में नौकरी होना भी बड़ी बात होती थी, लेकिन यहां पर ठेका मजदूरों की व्यथा से व्यथित होकर उन्होंने उस नौकरी को छोड़ दी और राजनीति में कूद पड़े.


1967 में पहली बार बने विधायक
पहली बार माकपा की टिकट पर वह वर्ष 1967 में सिंदरी से विधायक बने. वर्ष 1969 में दूसरी बार और 1972 में तीसरी बार जनवादी संग्राम समिति के बैनर तले सिंदरी के विधायक चुने गए. झारखंड आंदोलन में भी इन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी सक्रिय राजनीति में लाने का काम उन्होंने ही किया था. उस समय शिबू सोरेन महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. राय ने मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का गठन किया.


1977 में बने सांसद
जेपी आंदोलन में भी इन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और जेपी आंदोलन में बिहार विधानसभा से इस्तीफा देने वाले पहले विधायक बने. जेल से ही पहली बार 1977 में वे धनबाद के सांसद बने फिर 1980 में दूसरी बार और 1989 में तीसरी बार धनबाद के सांसद चुने गए. धनबाद कोयलांचल में प्रभावशाली मजदूर संगठन बिहार कोलियरी कामगार यूनियन की स्थापना इन्होंने की. इनकी पहचान सीधे-साधे, सादा जीवन यापन करने वाले इंसान के रूप में रही है. इन्होंने शादी तक नहीं की है. मजदूरों की सेवा को ही अपना मुख्य उद्देश्य बना लिया. न ही आज इनके पास अपना कोई मकान है और न ही कोई गाड़ी-घोड़ा.


सरकारी सुविधा नहीं ली
एके राय आज भी अपने एक कैडर के मकान में ही रहते हैं. कैडर के ही घर में रहकर खाना पीना खाते हैं. जमीन पर चटाई बिछाकर सोया करते हैं. तीन बार विधायक और तीन बार सांसद रहने के बाद भी इन्होंने किसी प्रकार की कोई सुविधा कभी नहीं ली. इन्होंने भारतीय राजनीति में ऐसा उदाहरण पेश किया है जो आज तक किसी दूसरे ने नहीं किया. उन्होंने अपने पेंशन का भी त्याग कर दिया है और भी अन्य किसी प्रकार की सुविधा नहीं ली है. यहां तक कि कभी भी कोई सुरक्षाकर्मी भी नहीं लिया. अपने पेंशन को इन्होंने राष्ट्रपति कोष में दान कर दिया है.


राजनीति के भीष्म पितामह
झारखंड आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने वाले राजनीतिक संगठन झारखंड मुक्ति मोर्चा के यह सूत्रधार रहे हैं. न ही झारखंड बल्कि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के आंदोलन में भी इन्होंने अपनी भूमिका निभाई है. इनके साथी सिंदरी विधानसभा से चार बार विधायक रह चुके आनंद महतो ने इनके बारे में काफी कुछ ईटीवी भारत को बतलाया.

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मजदूर भी मिलने आ रहे अस्पताल
एके राय की गंभीर स्थिति को देखते हुए मजदूरों के साथ-साथ स्थानीय नेताओं का धनबाद के सेंट्रल हॉस्पिटल आना-जाना लगा हुआ है. सभी इनके जल्द ही स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं. भाजपा विधायक फूलचंद मंडल, राज सिन्हा, ढुल्लू महतो, पूर्व मंत्री मन्नान मल्लिक, पश्चिम बंगाल के पूर्व सांसद बुद्धदेव भट्टाचार्य आदि ने अस्पताल पहुंचकर राय का हालचाल जाना.

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