देवघर: शिवगंगा सरोवर की कथा निराली है. ऐसा कहा जाता है कि रावण के मुक्के की प्रहार से इसकी उत्पत्ति हुई और ये पाताल गंगा है. इस जल का महत्व उतना ही है, जितना गंगा जल का. कांवरिया जब सुल्तानगंज से जल लेकर देवनगरी पहुंचते हैं, तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान कर संकल्प कराकर बाबा को जल अर्पण करने जाते हैं.
शिवगंगा सरोवर की कहानी
शिवगंगा सरोवर के बारे में कहा जाता है कि इसका जल कभी नहीं सूखता है. इसमें स्नान मात्र से मानव का कल्याण हो जाता है. पवित्र शिवगंगा सरोवर की कहानी के अनुसार रावण जब शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था, तब उसे लघुशंका का अहसास हुआ. लघुशंका के बाद उसे शुद्धि के लिए जल की जरूरत हुई, तो उसे जल नहीं मिला. उसने गुस्से में आकर अपने मुष्टि का प्रहार कर जल की उत्पत्ति की थी, इसे ही शिवगंगा कहा जाता है.
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105 किलोमीटर की सुल्तानगंज से देवघर की यात्रा कर जब कांवरिया शिवगंगा के तट पर पहुंचते हैं, तो सबसे पहले यहां स्नान कर पूजा पाठ करते हैं. फिर ये जल लेकर बाबा पर अर्पण करते हैं. इस तट पर पहुंचकर शिवभक्त पहले स्नान कर पुरोहितों से संकल्प कराकर मनोकामना मांगते हैं. उसके बाद ये बाबा भोले के दर्शन के लिए जाते है. यह शिवगंगा सरोवर बाबा मंदिर से उत्तर दिशा में 500 मीटर की दूरी पर स्थित है.
बहरहाल, इसके पीछे की कहानी यह भी है कि देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को जब भयानक शारीरिक बीमारी हो गई थी, तब उन्होंने भी शिवगंगा में स्नान किया था. जिसके बाद उनकी बीमारी खत्म हो गई थी.
कहा जाता है कि ये जल पाताल गंगा से आई है. इसलिए इस जल का खास महत्व है. इसमें नहाने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है. भक्त इस शिवगंगा के जल को गंगाजल की तरह ही इस्तेमाल करते हैं. इसमें स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है. भक्त जब बाबाधाम आते हैं, तो शिवगंगा में स्नान करना जरूरी समझते हैं.