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झारखंड के देवघर में हुआ था गांधी जी का जबरदस्त विरोध, कारण जानकर दंग रह जाएंगे

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसी ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 38वीं कड़ी.

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Published : Sep 23, 2019, 8:04 AM IST

देवघर : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने ओर देश को आजादी दिलाने वाले हम सब के बापू यानी महात्मा गांधी को भी देवघर में जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा था.

देवघर और गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

यह वाकया सामने आया था 25 अप्रैल, 1934 को, जब गांधी जी का देवघर आगमन हुआ था. उस वक्त बापू एक खास मकसद से बाबाधाम आये थे. दस्तावेजों से मिले सबूत और उस वक्त शहर में रहने वाले बताते हैं कि बापू बाबाधाम के मंदिर में दलितों को प्रवेश दिलाने आये थे.

दलितों से जुड़ी गांधी की पहल पर देवघर के पंडा समाज का एक वर्ग कुछ इस कदर हिंसक हो उठा था, कि गांधी जी को बीच रास्ते से ही बैरंग वापस लौटना पड़ा था.

दरअसल, बापू जसीडीह रेलवे स्टेशन से उतरकर सीधे देवघर स्थित बिजली कोठी पहुंचे. गांधी जी को बिजली कोठी लाने के लिए उस वक्त बभनगामा स्टेट की काले रंग की मोटर कार भेजी गई थी.

बिजली कोठी पहुचकर गांधी जी नित्य कर्म से निवृत हुए और बाबा मंदिर के लिए निकल गए, लेकिन रास्ते मे ही गांधी जी का विरोध कर रहे पंडा समाज के एक वर्ग ने बापू को घेर लिया.

आक्रोशित पंडा समाज ने दलितों को बाबाधाम मंदिर में प्रवेश कराने की कोशिश में जुटे गांधीजी की गाड़ी पर पत्थरबाजी भी की. लिहाजा गांधी जी मंदिर न जाकर बैरंग वापस लौट आये.

हालांकि, उस वक्त बापू के साथ आये विनोवा भावे मंदिर भी गए और पूजा अर्चना भी की. इसी दौरान आजादी के लड़ाई के दौरान बापू को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले नथमल सिंघानिया की मुलाकात भी देवघर की बिजली कोठी में ही हुई थी.

बहरहाल,देवघर में बापू का आगमन ओर दलितों को बाबा मंदिर में प्रवेश कराने के मकसद से आये बापू भले ही कामयाब नहीं हुए, मगर देवघर में उनका आना और एक ऐतिहासिक क्षण छोड़ जाना बेहद ही सुकून देने वाले क्षण हैं.

इसके बाद देवघर के टावर चौक स्थित कोने में गांधी की प्रतिमा लगाई गई, जो आज भी उनकी यादों को याद दिलाती है.

गांधी और देवघर के रिश्तों पर कुछ स्थानीय लोग समेत गोविंद डालमिया और प्रियनाथ पांडेय जैसे स्वतंत्रता सेनानी आज भी उन जमाने के पलों को बताते हैं.

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