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सारंडा में नहीं चलता पैसा! सामान के बदले सामान की परंपरा से ग्रामीणों को नुकसान - चाईबासा में सामान के बदले सामान का चलन

देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिया जा रहा है. वहीं, झारखंड में एक ऐसा गांव है, जहां डिजिटल पेमेंट तो छोड़िए, यहां पैसे का लेनदेन भी बहुत कम चलता है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा और पोड़ाहाट इलाके में सामान के बदले सामान की परंपरा अब भी बरकरार है. यहां के ग्रामीण आज भी व्यापारियों से चिरौंजी के बदले सामान लेते हैं.

Money does not run in Saranda chaibasa
सारंडा में नहीं चलता पैसा!ृ

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Published : Jun 9, 2020, 7:06 AM IST

चाईबासा: चिरौंजी झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के सारंडा और पोड़ाहाट के जंगलों में निवास करने वाले ग्रामीणों की तकदीर बदलने की ताकत रखता है, लेकिन आज भी सारंडा में समान के बदले पैसे नहीं दिए जाते हैं. बल्कि समान के बदले समान लेने का प्रचलन है. चिरौंजी के महत्व और कीमत से अनजान सारंडा के ग्रामीणों को क्षेत्र के व्यापारी मामूली कीमत देकर हजारों की चिरौंजी ले जाते हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

चिरौंजी एक प्रकार का बीज है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है. इसमें कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. इस वजह से इसकी कीमत करीब एक हजार रुपए प्रति किलो तक है. हालांकि, इस बात से ग्रामीण बेखबर हैं. यही कारण है कि यहां के व्यापारी इनसे एक किलो चिरौंजी लेकर बदले में 20 किलो चावल देते हैं, जो बहुत कम है.

बाजार के लिए चिरौंजी को तैयार करती ग्रामीण महिलाएं

चिरौंजी के महत्व की नहीं है जानकारी

जिले के सारंडा क्षेत्र के अधिकतर ग्रामीणों को चिरौंजी के महत्त्व की जानकारी ही नहीं है. ग्रामीण चिरौंजी को खाकर उसके बीज को फेंक देते हैं. जिन ग्रामीणों को इसकी खूबियों की जानकारी है. वह चिरौंजी के बीजों को संग्रहण कर गांव के आसपास लगने वाले हाट बाजारों में राशन के बदले बेच देते हैं. चिरौंजी झारखंड के साथ-साथ देश के कई राज्य जैसे ओडिशा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि क्षेत्रों में पाया जाता है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा की चिरौंजी की मांग देश के पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में अत्यधिक है.

बाजार में चिरौंजी बेचती बच्ची

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सारंडा वन प्रमंडल ग्रामीणों को यह सुविधा मुहैया करवा रही है कि ग्रामीणों को सारंडा के जंगलों से चिरौंजी के बीजों को संग्रहित करें. इसके साथ ही व्यापारियों से ग्रामीणों की बातचीत भी करवाई जाती है. वहीं, सारंडा के कई ग्रामीण आज भी सामान के बदले सामान लेना चाहते हैं. चिरौंजी के बदले चावल लेना पसंद करते हैं.

ग्रामीण धीरे-धीरे हो रहे हैं जागरुक

सारंडा वन प्रमंडल के डीएफओ रजनीश कुमार ने भी यह माना है कि सारंडा में सामान के बदले सामान का ही सिस्टम बना हुआ है. उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे सारंडा के ग्रामीण जागरूक हो रहे हैं. यह एक ही बार में संभव नहीं हो सकता है. अब ग्रामीण चिरौंजी को पैसे में बेचना भी शुरू कर दिया है. सारंडा वन प्रमंडल के अधिकारियों ने प्रोसेसिंग प्लांट में एक बोर्ड लगाकर उसकी जानकारी चाईबासा और चक्रधरपुर के व्यपारियों को देने की कोशिश की है.

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सारंडा की चिरौंजी की मांग देश के दूसरे राज्यों में भी है. इसे यहां से पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों में भेजा जाता है, लेकिन जरूरत है यहां के ग्रामीणों को जागरुक होने की ताकि लोग इसके महत्व को जान सकें और अपने हक की आमदनी हासिल कर सकें.

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