चाईबासा: लॉकडाउन के दौरान देश के अन्य राज्यों से आए प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की योजनाओं को धरातल पर उतारने की कवायद जिला प्रशासन ने तेज कर दी है. इसके तहत पश्चिमी सिंहभूम जिले के औसतन 25 से 30 हजार मजदूरों को काम दिया जा रहा है और उनके खाते में 50 लाख प्रत्येक दिन भेजे जा रहे हैं. जो एक पश्चिमी सिंहभूम जिले के लिए बड़ी उपलब्धि है और इसकी संख्या बढ़ाने की दिशा में भी पहल की जा रही है.
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पश्चिमी सिंहभूम कर रहा सबसे ज्यादा पौधारोपण
पश्चिमी सिंहभूम जिले के उप विकास आयुक्त आदित्य रंजन ने जानकारी देते हुए बताया गया कि झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जो निर्देश प्राप्त है उसमें तीन बड़ी योजनाएं मनरेगा के अंतर्गत हैं. जिसमें पहला 'बिरसा हरित ग्राम योजना' के क्रियान्वयन को लेकर खुशी की बात है कि जिला पूरे राज्य में सबसे ज्यादा एकड़ भूमि में पौधारोपण कर रहा है. जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा और भविष्य में इसे स्वरोजगार से जोड़ा जा सकेगा. यह बहुत बड़ी उपलब्धि इस जिले के लोगों के लिए होगी.
उप विकास आयुक्त आदित्य रंजन ने बताया कि इस क्षेत्र के जो वीर शहीद रहे हैं जिन्होंने पूरे देश में नाम रोशन किया है और अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ी है. उनके नाम पर 'पोटो हो' खेल मैदान विकास योजना के तहत सबसे ज्यादा खेल मैदान चयनित करने का लक्ष्य रखा गया है. उन्होंने कहा कि यह प्रयास होगा की सबसे ज्यादा कार्य इस योजना के तहत पूरे राज्य में इस जिले में हो. इस संदर्भ में खेल मैदान का चयन करते हुए सूची तैयार की जा रही है ताकि ज्यादा से ज्यादा खेल मैदान बन सके और यहां के लोगों को एक अच्छी सुविधा उपलब्ध करायी जा सके.
डीडीसी ने बताया कि तीसरे 'नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना' के तहत जिले में काफी क्षेत्रों में जल समृद्धि विभिन्न माध्यमों से किया जा रहा है. इस योजना के तहत विशेष ध्यान देते हुए क्योंकि पठारी क्षेत्र होने के कारण 'पानी रोको-पौधा रोपो' के तहत जो कर रहे हैं. उसमें पानी रोकने के लिए जो सबसे सफल योजना प्रतीत होती है. वह नाला का जीर्णोद्धार है जिसमें छोटे-छोटे गड्ढे बनने हैं. इसका भारी मात्रा में चयन किया गया है और भी ज्यादा चयन करने की प्रक्रिया जारी है. उन्होंने कहा कि कोशिश यही है कि इस बार बरसात में 'रेन वाटर' को मिनिमम कर सकें.
श्रमिकों का डेटाबेस किया जा रहा है तैयार
डीडीसी ने बताया कि इन सभी कार्यों के अलावा जिले में वापस आने वाले सभी प्रवासी श्रमिक भाइयों का एक बढ़िया डेटाबेस तैयार किया गया है जिसमें उनका नाम, लिंग, पता, गांव का नाम, मोबाइल नंबर और उनका स्किल, किस कार्य में वह कुशल है. किन्हीं का कौशल लेबर का है, टाइल्स मिस्त्री का है, इलेक्ट्रिशियन का है, तो अलग-अलग स्किल्स का मैपिंग किया जा रहा है. ताकि जून के मध्य में उद्योग केंद्र के जीएम के साथ बैठक कर यहां के छोटे-छोटे इंडस्ट्रीज की भी एक सूची तैयार करते हुए एक मैपिंग की जा सके. जिससे प्रवासी मजदूर जो यहां आए हैं अपनी इच्छा अनुसार मनरेगा से जुड़ पाए और जो नहीं जुड़ पाएंगे उनको जिला प्रशासन एमएसएमई से जोड़ेगा.
उन्होंने बताया कि पश्चिमी सिंहभूम जिला में 5 बड़े-बड़े स्किल सेंटर चल रहे हैं. जहां अलग-अलग समय के कई कोर्स है. जिला प्रशासन का यह प्रयास है कि जो श्रमिक बंधु लौट के आ रहे हैं. उन्हें भी आवश्यकता अनुसार प्रशिक्षण देकर अगर प्रशासन उन लोगों के लिए स्थायी रोजगार की व्यवस्था कर सकें तो इससे अच्छा कुछ नहीं होगा. डीडीसी ने कहा कि दिहाड़ी मजदूर से स्थायी मजदूर बनने का जो सफर है वह पश्चिमी सिंहभूम जिला जितनी जल्द तय करेगा उतनी ही तकलीफें आगे लोगों के लिए कम होगी.
मनरेगा में मानदेय बढ़कर 194 रुपए हुआ
उप विकास आयुक्त ने बताया कि जिला में मनरेगा कार्य के तहत लगभग 25 से 30 हजार मजदूर प्रतिदिन कार्य कर रहे हैं और अभी मनरेगा के तहत मानदेय बढ़कर 194 रुपए हुआ है उस हिसाब से लगभग 50 लाख यहां के श्रमिक के खाते में प्रत्येक दिन डाले जा रहा है. जो कि इस जिला के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और प्रशासन का यह प्रयास होगा कि यह संख्या और भी बढ़े. योजनाओं को सही ढंग से धरातल पर उतारने के लिए किसी भी पदाधिकारी पर काम का अतिरिक्त बोझ नहीं दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिले के 217 पंचायतों में औसतन 125 मजदूर प्रतिदिन काम कर रहे हैं जिसे बढ़ाकर 150 मजदूर प्रतिदिन ले जाना भी जिला प्रशासन के लिए एक उपलब्धि भरा कार्य होगा.