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विश्व आदिवासी दिवस: सिमटते जंगलों में गुम हो रहा बिरहोर आदिवासियों का वजूद

2011 की जनगणना के बाद 2018 तक बिरहोर की आबादी में महज 22 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि दूसरे लोगों की आबादी में इस दौरान 50 से 80 फीसदी की वृद्धि हुई. बिरहोर की आबादी में वृद्धि नहीं होने की वजह सिमटता जंगल, कुपोषण और ज्यादा शराब पीने की लत है.

विश्व आदिवासी दिवस

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Published : Aug 8, 2019, 1:47 PM IST


बोकारो: झारखंड में आदिवासियों की कई ऐसी जनजातियां हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं. इनमें से एक बिरहोर जनजाति है. बिरहोर छोटा नागपुर क्षेत्र के नागवंशी समुदाय से अलग होकर हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, धनबाद बोकारो और दूसरे जिलों में फैल गए.

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2011 की जनगणना के अनुसार कुल आदिम जनजाति की आबादी 292369 थी, जिनमें बिरहोर की आबादी महज 10726 है. यह आदिम जनजाति विलुप्त के कगार पर है. यही वजह है कि सरकार इनके संरक्षण के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. बोकारो में मुख्य रूप से गोमिया, चंदनकियारी और पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे इलाकों में बिरहोर पाए जाते हैं. बिरहोर जहां पाए जाते हैं उसे बिरहोर टनडा कहा जाता है. बोकारो में बिरहोर टनडा डूंमरी, बिरहोर टनडा तुलबुल, बिरहोर टनडा खखरा जैसी जगह हैं, जहां के जंगलों में यह रहते हैं.

2011 की जनगणना के बाद 2018 तक बिरहोर की आबादी में महज 22 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि दूसरे लोगों की आबादी में इस दौरान 50 से 80 फीसदी की वृद्धि हुई. बिरहोर की आबादी में वृद्धि नहीं होने की वजह सिमटता जंगल, कुपोषण और ज्यादा शराब पीने की लत है. वहीं, बिरहोर में अंधविश्वास और जादू टोना, झाड़-फूंक पर ज्यादा विश्वास होने की वजह से यह डॉक्टर के पास जाने से परहेज करते हैं. इसकी वजह से भी इनमें मृत्यु दर अधिक है.

इनकी बोली बिरहोर है जो संथाली भाषा से मिलती-जुलती है. सोहराय, बिरहोर, कर्मा इनकी गायन शैली है. वहीं, शादी विवाह के मौके पर यह बिरहोर शैली में नृत्य करते हैं. यह नृत्य शैली कमोबेश दूसरी आदिम जनजातियों की शैली की तरह ही होती हैं. ऐसा माना जाता है कि गोमिया के बिरहोर टनडा के पास के जंगलों में जड़ी बूटियों की विशाल संपदा है और इसकी सहायता से बिरहोर कैंसर जैसी बीमारियों का भी इलाज कर सकते हैं. यहां मूसली, इंद्रजौ, शतावर, चिरोता, एकसार जैसे दुर्लभ जड़ी बूटी हैं. बिरहोर को जंगली बेलों से रस्सियां बनाने में भी महारत हासिल है. अब रस्सी बांटकर बेचना और बकरी पालन करना इनका मुख्य पेशा बन गया है.

सरकार ने बिरहोर को संरक्षित करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की है. यही वजह है कि बिरहोरों के गांव में आपको विकास दिखेगा. बिरहोरों के लिए घर बनाए गए हैं, स्कूल खोले गए हैं, आंगनबाड़ी केंद्र हैं. गांव के सभी बिरहोर को सरकार की तरफ से पेंशन भी दी जा रही है. इसके बावजूद इनका विकास नहीं हो रहा है. इसकी वजह इनकी जड़ों यानी जंगलों में रोजगार नहीं मिलना है.

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