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बच्चों को फेंके नहीं हमें दें, मंदिर, मस्जिद और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लगाया गया पालना

चाईबासा में जिला प्रशासन ने लावारिस नवजात बच्चों को बचाने की एक पहल की है. जिसमें लोगों से अपील की गई है कि वो बच्चों को लावारिस हालत में नहीं छोड़ें, बल्कि प्रशासन के रखे पालना में रख दें.

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Published : Jul 3, 2019, 1:46 PM IST

चाईबासा: बच्चों को अभिभावक लावारिस हालत में छोड़ देते हैं. जिससे कई बार बच्चों की मौत हो जाती है. केंद्रीय महिला विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग के मंत्री के निर्देश पर पश्चिम सिंहभूम जिला प्रशासन ने इसके लिए एक योजना बनाई है. 'बच्चे ईश्वर की अनमोल देन है इसे फेंके नहीं हमें दें' स्लोगन के साथ पश्चिम सिंहभूम जिले के सार्वजनिक स्थलों पर पालना रखने की शुरुआत हुई है.

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इसे लेकर जिला प्रशासन ने काफी संख्या में पालना मंगवाया है. जो जिले के सभी प्रखंडों के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे एवं चर्चों में रखे जाएंगे. इसके साथ ही साथ पंचायत के सामुदायिक केंद्रों में और उप स्वास्थ्य केंद्रों में भी रखे जाएंगे. राज्य सरकार ने दूसरे राज्यों की तर्ज पर उन नवजात शिशुओं को बचाने का संकल्प लिया है, जिन्हें उनके मां-बाप यहां-वहां फेंककर चले जाते हैं. सरकार ने ऐसे बच्चों को बचाने का संकल्प लिया है जिसे 'पालना योजना' का नाम दिया गया है. बच्चों को कोई भी इस पालना में रख सकता है.


सार्वजनिक स्थलों पर लगाए गए पालना
ऐसे अभिभावक जो बच्चों को पालना नहीं चाहते, उनके लिए जिला प्रशासन की ओर से सार्वजनिक स्थलों पर पालना लगाए जाएंगे. प्रथम चरण में 30 पालना लगाया जाएगा. इन्हें जिले के 15 सीएचसी सेंटरों एवं जिले के 18 प्रखंडों के सार्वजनिक स्थलों पर रखें जाएंगे. इसके साथ ही साथ जिले में चल रहे हैं अस्पतालों, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि स्थानों पर पालना लगाए जाएगा.


बच्चों को एडॉप्शन सेंटर में रखा जाएगा
ऐसे बच्चों के स्वास्थ्य की जांच कराकर जिला बाल संरक्षण इकाई एवं बाल कल्याण समिति के द्वारा बच्चे की देखभाल के लिए उन्हें एडॉप्शन सेंटर में रखे जाएंगे. सरकार का मानना है कि समाज में ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं. जिनमें नवजात बच्चे को लोग जन्म देने के बाद मरने के लिए यहां-वहां फेंक देते हैं. इस पालना योजना से ऐसे बच्चों को नया जीवन प्रदान किया जाएगा.

क्या होगी प्रक्रिया
पालना में प्राप्त होने वाले अनचाहे बच्चों को सर्वप्रथम प्रशासन अब अपने कब्जे में लेकर उसका स्वास्थ्य जांच कराएगा. उसके बाद लीगल प्रक्रिया के तहत बच्चों को 3 महीने तक प्रशासन अपने अधीन रखेगा. इस दौरान प्रशासन द्वारा बच्चों के माता-पिता की खोज की जाएगी. खोज प्रक्रिया के तहत अखबारों के माध्यम से विज्ञापन निकालकर प्रशासन बच्चों के माता-पिता को खोजने का प्रयास करेगा. अगर 60 दिनों के भीतर बच्चों की पहचान नहीं हो पाती है तो प्रशासन द्वारा बच्चों को गोद दान प्रक्रिया के अंतर्गत एडॉप्शन सेंटर को सौंप दिया जाएगा. प्रशासन द्वारा पालने में जिला प्रशासन के साथ ही संबंधित विभाग का हेल्पलाइन नंबर भी उपलब्ध कराएगा ताकि बच्चे को रखने के पश्चात इसकी सूचना प्रशासन तक पहुंच सके.


इस योजना को नहीं मिलेगी सरकारी मदद
इस योजना के लिए सरकारी मदद से कोई भी राशि खर्च नहीं की जाएगी. इसका संचालन से लेकर बच्चों की देखभाल तक का जिम्मा जिला बाल संरक्षण विभाग का होगा. इसके लिए सोशल रिस्पांसबिलिटी मद और आम जनता से सहयोग राशि जुटाई जाएगी. हालांकि, फिलहाल इस पालना योजना को सुचारू रूप से धरातल पर उतारने को लेकर खरीदे गए पालना की खरीदारी डीएमएफटी फंड से की गई है.


इन स्थानों पर लगेगा पालना

  1. सदर अस्पताल, चाईबासा - 01
  2. जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर - 15
  3. एसीसी हॉस्पिटल, झींकपानी - 01
  4. सेल हॉस्पिटल, गुआ - 01
  5. सेस अस्पताल, बड़ा जामदा - 01
  6. करणी मंदिर, चाईबासा - 01
  7. मस्जिद जगन्नाथपुर - 01
  8. गुरुद्वारा चक्रधरपुर - 01
  9. चर्च मनोहरपुर - 01
  10. चर्च आनंदपुर - 01
  11. टिस्को हॉस्पिटल, नोवामुंडी - 01

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