रांची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली है. झारखंड में सबसे कम वोट के अंतर से खूंटी लोकसभा सीट जीतने वाले अर्जुन मुंडा के लिए 30 मई यानी गुरुवार का दिन बेहद खास है.
सरयू राय से बात करते वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह अर्जुन मुंडा ने कायम रखी अपनी राजनीतिक पहचान
पिछले विधानसभा चुनाव में खरसावां सीट हारने वाले अर्जुन मुंडा पिछले 5 वर्षों से अपनी राजनीतिक पहचान को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते आ रहे थे. मोदी कैबिनेट में जिस तरह से अर्जुन मुंडा को जगह मिली इससे साफ हो गया कि भाजपा आलाकमान की नजर में झारखंड में अर्जुन मुंडा ही आदिवासियों के सबसे बड़े नेता हैं.
अर्जुन मुंडा आदिवासियों के हैं प्रिय
अर्जुन मुंडा के बेहद करीबी कहे जाने वाले और रघुवर सरकार में मंत्री सरयू राय ने पूरे मामले पर ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने कहा कि झारखंड की राजनीति में अर्जुन मुंडा सर्वमान्य नेता के रूप में जाने जाते हैं. उनको जितना स्नेह आदिवासियों से मिलता है उतना ही स्नेह गैर आदिवासियों से भी मिलता है. लिहाजा झारखंड में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नरेंद्र मोदी कैबिनेट में अर्जुन मुंडा को जगह मिलने से झारखंड में अच्छा मैसेज जाएगा.
जयंत सिन्हा और सुदर्शन भगत को क्यों नहीं मिली मंत्रिमंडल में जगह
हमारा दूसरा सवाल था कि नए मंत्रिमंडल में जयंत सिन्हा और सुदर्शन भगत को जगह नहीं मिलने के पीछे आखिर क्या वजह रही होगी? इस सवाल का जवाब सरयू राय ने राजनीतिक अंदाज में यह कहते हुए दिया कि जिस कारण से दोनों नेता मंत्री बने थे, संभव है कि उसी कारण से दोनों को इस बार जगह नहीं मिली. अब कारण क्या है इसके कई मायने निकाले जा सकते हैं.
हालांकि सरयू राय ने कहा कि जयंत सिन्हा और सुदर्शन भगत ने अपने-अपने विभागों के काम को बखूबी निभाया है. उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में झारखंड से मोदी कैबिनेट में नए चेहरे भी शामिल हो सकते हैं.
देश की जनता ने ठाना मोदी ही होगें PM: सरयू राय
सरयू राय ने कहा कि इस बार देश की जनता ने ठान लिया था कि नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री बनाना है, लोग राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एकजुट थे. इसका मतलब यह नहीं की लोकसभा चुनाव का मोदी फेक्टर आगामी विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिले. लिहाजा उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि झारखंड विधानसभा चुनाव को बहुमत से जीतने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है क्योंकि दो-चार महीने बाद परिस्थितियां बदल सकती हैं और यही राजनीति का तकाजा रहा है.