चिंतपूर्णी: 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरु हो रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के सभी शक्तिपीठों और मंदिरों को सजा दिया गया है. इन जगहों पर सरकार की गाइडलाइन के अनुसार लोग मंदिरों में मां के दर्शन कर सकेंगे. इसी के चलते जिला ऊना में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी देंगे. ये मंदिर भारत का प्राचीन मंदिर है, जो कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्य की सीमा पर स्थित है.
जालंधर दैत्य के तप से हुई थी छिन्नमस्तिका की स्थापना
मां छिन्नमस्तिका इस क्षेत्र में जालंधर दैत्य की आराधना से स्थापित हुई थीं. त्रेता युग में जलधर दैत्य भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे. जलंधर दैत्य भगवान विष्णु, शिव व ब्रह्मा का महान तपस्वी था. उसने दस महाविद्याओं में से आठ पर सिद्धि प्राप्त कर ली थी. इसके बाद उसने देवताओं पर अत्याचार करने शुरु कर दिए थे. जलधर दैत्य की पत्नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थीं. वह भी शिव उपासक थीं. वह उसे सभी मुसीबतों से बचा लेती थीं.
वहीं, अत्याचारों से तंग आकर देवताओं ने भगवान शिव से गुहार लगाई. इसपर भगवान शिव ने जालंधर दैत्य का खुद वध करने का फैसला किया, लेकिन जालंधर दैत्य के श्राप से बचने के लिए भगवान विष्णु को उन्होंने भेष बदलकर वध करने के लिए कहा. भगवान विष्णु ने दैत्य का वध कर दिया.
अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जालंधर दैत्य ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया कि किसी भी उपासक के जलंधर पीठ क्षेत्र में शैव व शांक की आराधना करने पर आराधना चार गुना अधिक फलित होगी. जालंधर दैत्य ने जालंधर पीठ क्षेत्र में 365 देवालयों व चार द्वारपालों की स्थापना की थी. यह कालेश्वर महादेव, कुंजेश्वर महादेव (लम्बा गांव), नंदीकेश्वर महादेव (चामुंडा), कुवेश्वर महादेव (जो अब पौंग बांध में जलमग्न हो चुका है), जलंधर पीठ की चारों दिशाओं से रक्षा करते थे.