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इस गुफा में चट्टानों से शिवलिंग पर गिरता था दूध! भस्मासुर से बचने के लिए शिवजी ने ली थी शरण - भगवान शंकर की पवित्र शिवलिंग

जिला सोलन के कुनिहार में ड्यार के नाम से विख्यात गुफा आज शिव तांडव गुफा के नाम से जानी जाती है. यह शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है.

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सतयुग से संबंध रखती है यह गुफा

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Published : Jan 27, 2020, 8:06 AM IST

देवभूमि हिमाचल अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्य छिपाए हुए है. यहां के कण-कण में देवी देवताओं का वास तो है ही, साथ ही यह भूमि कई पौराणिक कथाओं से भी संबंध रखती है. ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज रहस्य में आपको कुछ ऐसे ही रहस्यमई स्थानों और कथाओं से रूबरू करवाता है.इस बार हम आपको एक ऐसी जगह ले चलेंगे जहां भगवान शंकर ने भस्मासुर से बचने के लिए शरण ली थी. यहां मौजूद गुफाएं आज भी विज्ञान के लिए चुनौती बनी हुई है.

जिला सोलन के कुनिहार में ड्यार के नाम से विख्यात गुफा आज शिव तांडव गुफा के नाम से जानी जाती है. यह शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है. गुफा में हर सोमवार को श्रद्धालूओं का तांता लगा रहता है. यह गुफा कोई साधारण गुफा नहीं है. यह गुफा सतयुग से संबंध रखती है. सारे संसार की रक्षा करने वाले भगवान भोले नाथ को भी किसी समय इसी गुफा में शरण लेनी पड़ी थी.

मान्यता है कि शिव तांडव गुफा के अंदर गाय के थनों के आकार की चट्टानों से कभी शिवलिंग पर दूध गिरता था, लेकिन बाद में इन से पानी गिरना शुरू हो गया. यहां पर भगवान शंकर की पवित्र शिवलिंग का अभिषेक कोई इंसान नहीं बल्कि खुद प्रकृति करती है. गाय के थनों के आकार की चट्टानों से टपकता पानी विज्ञान को भी अचंभे में डाल देता है.

इस गुफा के अंदर मौजूग शिव परिवार के साथ-साथ नंदी की शिला स्वयंभू है
इस गुफा का वर्णन शिव पुराण में भी आता है. मान्यता है कि भस्मासुर ने शिव आराधना कर शिव भगवान को प्रसन्न करने के बाद वरदान मांगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. भस्मासुर ने वरदान का प्रयोग भोले शंकर पर ही करना चाहा और फिर भोले शंकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं में छुप गए थे. जिन भी गुफाओं में वह जाते. वहां पर अपना प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते हैं. कहा जाता है कि भोले नाथ ने इस शिव तांडव गुफा में भी प्राणों की रक्षा के लिए प्रवेश किया था.

रहस्य

मान्यता है कि इस गुफा के भीतर फनेसश्वर शेष नाग मग्न मुद्रा में फन फैलाए बैठे थे. त्रिकालदर्शी शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशालकाय फन के नीचे छुपा लिया था और जब भस्मासुर ने चिंघाड़ते हुए गुफा में प्रवेश किया तो वो फन फैलाए शेषनाग के डर से शिव के पास नहीं आ पाया और झुंझलाकर उलटे पांव लौट गया. इस के बाद गुफा में भगवान शंकर अपनी पिंडी, शेषनाग फन और नंदी बैल का स्मृति चिन्ह छोड़कर अदृश्य हो गए.

कई युग बीत जाने के बाद आज भी वह शिवलिंग, शेषनाग फन, नंदी बैल का स्मृति चिन्ह उस समय घटी घटनाओं के प्रमाण दे रहे हैं. शेष नाग का इस समस्त गुफा का भार वहन करना एक आश्चर्यजनक अजूबा ही है. अमरनाथ गुफा की तरह दिखने वाली इस गुफा में लोगों को आत्मिक शांति मिलती है. गुफा की सरंचना प्राकृतिक रूप से कुछ इस तरह से हुई है कि देव शिल्पी भी सतयुग में इस तरह की सरंचना नहीं कर पाए होंगे.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि देव भूमि कहे जाने वाले इस प्रदेश में खुद प्रकृति भगवान के होने के साक्ष्य देती है. ईटीवी भारत आपकों अपनी सीरीज में ऐसे ही स्थानों से परिचित करवाता आया है, जो अद्भुत है, अकल्पनीय है और कई रहस्यों और कभी न सुलझने वाली पहेलियों से भरे हुए हैं.

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