सोलन: देश को मशरूम का स्वाद चखाने का श्रेय हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर को जाता है. इसी शहर में मशरूम की दर्जनों किस्मों की खोज की गई. मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन के अथक प्रयासों से यह मुमकिन हुआ है.
सोलन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीआर) ने 1961 में मशरूम पर काम करना शुरू किया था. पहले छोटे स्तर पर बटन मशरूम का उत्पादन किया गया. इसके बाद 1970 में चंबाघाट के कृषि विश्वविद्यालय में मशरूम पर रिसर्च शुरू हुई. 1983 में सोलन में खुम्ब अनुसंधान केंद्र की स्थापना हुई. 10 सितंबर 1997 को सोलन को मशरूम सिटी ऑफ इंडिया के खिताब से नवाजा गया.
30 प्रजातियों को ईजाद कर चुका है DMR
2008 में इसे खुम्ब अनुसंधान निदेशालय(DMR) का दर्जा मिला. देश का एकमात्र खुम्ब अनुसंधान निदेशालय पिछले 6 दशकों के सफर में डीएमआर(मशरूम अनुसंधान निदेशालय) मशरूम की 30 प्रजातियों को ईजाद कर चुका है. आज भी यहां मशरूम की दर्जनों प्रजातियों पर रिसर्च का काम जारी है. यहां मशरूम की ऐसी किस्में तैयार की जा रही हैं, जो 12 डिग्री से 32 डिग्री तापमान में उगाई जा सकती हैं.
मशरूम में कुपोषण, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, शुगर विटामिन, कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने की क्षमता होती है. इनमें गनोडरमा, कोर्डिसेप्स, शिटाके मशरूम कई गंभीर रोगों को दूर करने में लाभदायक सिद्ध हो रही हैं.
मेडिसनल उपयोग वाली प्रजातियां
मेडिसनल प्रयोग में कामयाब मशरूम कई प्रजातियां यहां विकसित और ईजाद की गई हैं. खुम्ब अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. वीपी शर्मा बताते हैं कि, पिछले 5 से 10 सालों में जिस तरह से मशरूम के क्षेत्र में खुम्ब अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने जो काम किया वह काबिले तारीफ है. अब तक मेडिसिनल प्रयोग के लिए 8 से 10 मशरूम की प्रजातियां ईजाद यहां हो चुकी है. यह प्रजातियां एड्स, कैंसर, सांस लेने में परेशानी और लीवर जैसी बीमारियों के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं.
कोर्डिसेप्स मिलटेरियस मशरूम
कोर्डिसेप्स मिलटेरियस मशरूम शारीरिक क्षमता को बढ़ाने में कारगर सिद्ध है. यह मशरूम बाजार में करीब ढाई से तीन लाख रुपये प्रति किलो बिकता है. इस मशरूम के मानव शरीर के लिए कई फायदे हैं. आज के समय में कई लोग कैंसर, किडनी, फेफड़े की बीमारियों से जूझ रहे हैं. यह मशरूम ऐसे लोगों के लिए संजीवनी बूटी से कम नहीं है.
कॉर्डीसेप्स मिलटेरियस मशरूम खासतौर से थकान मिटाने और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए भी जाना जाता है. यह मशरूम महिलाओं में कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए भी फायदेमंद है. जानकारी के अनुसार खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन में वैज्ञानिकों को इस मशरूम पर शोध करने के लिए लगभग 6 साल से ज्यादा का समय लगा था. इसके बाद ही वैज्ञानिक मेडिसिनल मशरूम कोर्डिसेप्स को उगाने में सफल हो पाए थे.
गैनोडर्मा लूसीडम
बात अगर गैनोडरमा लूसीडम मशरूम प्रजाति की जाए तो इस मशरूम की बाजार में ज्यादातर मांग रहती है. इस प्रजाति का प्रयोग दवाइयों के रूप में ज्यादा किया जाता है. बाजार मे गैनोडर्मा कैप्सूल, गैनोडर्मा कॉफी और गैनोडर्मा टी जैसे प्रोडक्ट उपलब्ध हैं. गैनोडरमा मशरूम खाने में कड़वा होता है, जिस कारण इसका उपयोग कैप्सूल के तौर पर किया जाता है.
बाजार में इसकी कीमत आठ हजार से नौ हजार तक आंकी जाती है. गैनोडरमा लूसीडम मशरूम की यह प्रजाति कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों जैसी बीमारियों से निजात पाने के लिए फायदेमंद मानी जाता है. वहीं ,यह मशरुम भी बॉडी के इम्यून सिस्टम को भी सही रखने में सक्षम है.
हिरेशियम मशरूम
हिरेशियम मशरूम की इस प्रजाति को कोरल मशरूम के नाम से भी जाना जाता है. इसे ईजाद करने में खुम्ब अनुसंधान केंद्र को करीब 3 साल तक मेहनत करनी पड़ी. इसमें हीरेशियम की अधिक मात्रा पाए जाने के साथ-साथ यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को ठीक रखने और याददाश्त बढ़ाने में उपयोगी माना जाता है. यूरोपीयन कंट्री में इसे ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था.