सोलन: मशरूम सिटी के नाम से विश्वभर में मशहूर सोलन जिला के कारोबार पर कोरोना के कहर से अरबों का चूना लगा है. सोलन शहर में स्थापित खुंभ अनुसंधान निदेशालय दुनिया भर के लिए मशरूम की नई किस्में सप्लाई करता है, लेकिन इस साल कोरोना महामारी की वजह से मशरूम की खेती पर बुरा असर पड़ा है. ईटीवी भारत संवाददाता ने देश के इकलौते मशरूम निदेशालय में जाकर कोरोना के चलते मशरूम जगत को हुए नुकसान की पूरी जानकारी ली.
इस दौरान खुंभ अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ. वीपी शर्मा ने बताया कि मशरूम के किसानों को कोरोना लॉकडाउन के चलते उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. लॉकडाउन में मशरूम उत्पादन के लिए कच्चा माल भी नहीं मिल पा रहा है. देशभर मे करीब तीन लाख किसान मशरूम की खेती करते हैं. देश में सालाना दो लाख टन मशरूम का उत्पादन किया जाता है.
उन्होंने बताया कि देश में 74 प्रतिशत वाइट बटन मशरूम, 12 प्रतिशत ढींगरी मशरूम, 12 प्रतिशत पेडिस्ट्रा मशरूम और दो प्रतिशत मिल्की मशरूम और शिटाके मशरूम का उत्पादन होता है. डॉ. वीपी शर्मा ने बताया कि मशरूम में 90 प्रतिशत पानी पाया जाता है, जिसकी वजह से मशरूम ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है. खुंभ अनुसंधान निदेशालय रोजाना देशभर में स्थापित 37 केंद्रों के माध्यम से 27 राज्यों में किसानों मशरूम को बचाने के बारे में गाइडलाइन दे रहा है.
सालभर होता है मशरूम का उत्पादन
डॉ. वीपी शर्मा ने बताया कि देशभर में सीजनल और कंट्रोल एनवायरमेंट मशरूम का वर्षभर उत्पादन किया जाता है. सीजनल मशरूम का उत्पादन उत्तरी भारत में ज्यादा किया जाता है. इस मशरूम का उत्पादन अक्तूबर से लेकर फरवरी तक किया जाता है और इसे देश के करीब 60 प्रतिशत किसान इस मशरूम का उत्पादन करते हैं. लॉकडाउन का सीजनल उत्पादकों पर खासा असर नहीं पड़ा है, लेकिन कंट्रोल एनवायरमेंट मशरूम की खेती करने वाले उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ढींगरी मशरूम पर खासा असर पड़ा है.
नहीं मिल रहे उचित दाम