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किसान आंदोलन: सोलन में किसानों के समर्थन में नारेबाजी, कानूनों को बताया किसान विरोधी - सोलन लेटेस्ट न्यूज

हिमाचल प्रदेश के किसान भी किसान आंदोलन के समर्थन में उतर आये हैं व कृषि आंदोलन के विरोध में शनिवार को विभिन्न किसान संगठन के बैनर तले किसानों ने कृषि कानूनों पर नारेबाजी की. उपायुक्त कार्यालय सोलन एवं पुराने बस अड्डे पर आज किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में व किसान आंदोलन के समर्थन में प्रर्दशन किया. जिसमें किसानों द्वारा केन्द्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई. किसान नेताओं का कहना है केंद्र की सरकार किसानों को ऐसे तानाशाही वाले फैसलों से समाप्त करना चाहती है.

Protest against agricultural laws of the Kisan Sabha in Solan
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Published : Dec 5, 2020, 4:44 PM IST

सोलन: इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में विशाल किसान आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि बिलों पर किया जा रहा है. जिसमें कहीं ना कहीं केन्द्र सरकार का भी गला सूख गया है. केंद्र सरकार भी किसानों के सामने बैकफुट पर नजर आ रही है.

अब हिमाचल प्रदेश के किसान भी किसान आंदोलन के समर्थन में उतर आये हैं व कृषि आंदोलन के विरोध में शनिवार को विभिन्न किसान संगठन के बैनर तले किसानों ने कृषि कानूनों पर नारेबाजी की.

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कृषि कानूनों के खिलाफ की नारेबाजी

उपायुक्त कार्यालय सोलन एवं पुराने बस अड्डे पर आज किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में व किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन किया. जिसमें किसानों द्वारा केन्द्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई. किसान नेताओं का कहना है केंद्र की सरकार किसानों को ऐसे तानाशाही वाले फैसलों से समाप्त करना चाहती है.

अब भी न मानी केंद्र सरकार तो हिमाचल का किसान भी करेगा दिल्ली के लिए कूच

किसान नेता नीतीश ठाकुर ने बताया कि वह कृषि बिलों के विरोध में हैं व दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के पक्ष में है. उन्होंने कहा कि अभी हिमाचल से करीब 200 किसान दिल्ली गए है, यदि समय रहते केंद्र सरकार ना मानी तो हिमाचल के किसान भी दिल्ली के लिए कूच कर जाएंगे.

किसानों के आंदोलनों को कुचलना सरासर अलोकतांत्रिक

उन्होंने कहा कि किसान पिछले कई दिनों से आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार ने पूरी तरह से उनकी मांगों की अनदेखी की है. सरकार के किसान विरोधी बिल पूंजीपतियों के हक में है. इससे किसानों का बड़े पैमाने पर शोषण और किसानी उनके लिए घाटे का सौदा बन कर रह जाएगी.

केंद्र सरकार किसानों की मांगों को सुनने के बजाए उनके आंदोलन को कुचलने के प्रयास कर रही है जो कि सरासर अलोकतांत्रिक है.

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