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सोलन में किसानों की पंसद बनी प्राकृतिक खेती, 1394 हेक्टेयर भूमि पर की जा रही जहर मुक्त खेती

हिमाचल प्रदेश में किसान बड़े स्तर पर प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं. जिला सोलन में ही 50 हजार किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, जबकि 9 हजार किसान प्राकृतिक खेती के तहत कृषि विभाग के पास पंजीकृत हैं. केंद्र और राज्य सरकार भी लगातार प्राकृतिक खेती को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है.

Natural farming on 1394 hectares of land in Solan.
सोलन में 50 हजार से ज्यादा किसानों की पंसद बनी प्राकृतिक खेती.

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Published : May 10, 2023, 6:03 PM IST

सोलन में 50 हजार से ज्यादा किसानों की पंसद बनी प्राकृतिक खेती.

सोलन: हिमाचल प्रदेश में बीते कुछ सालों से किसान जहर युक्त रासायनिक खेती को छोड़ कर प्राकृतिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं. केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती को लेकर किसानों में जागरुकता लाने के लिए विशेष कार्य कर रही है. हिमाचल प्रदेश में भी व्यापक स्तर पर किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में जिला सोलन में भी 1394 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा रही है. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशभर में अभियान चलाया जा रहा है. हिमाचल में भी 2018 से यह अभियान चला हुआ है, तब इसे जीरो बजट खेती का नाम दिया गया था.

'50 हजार से ज्यादा किसानों की पंसद बनी प्राकृतिक खेती': इसके तहत शुरुआत में सोलन जिले में 50 किसानों को इस खेती को करने का प्रशिक्षण दिया गया और अब करीब 9 हजार किसान इस खेती के तहत कृषि विभाग के पास पंजीकृत हैं. जबकि 50 हजार से ज्यादा किसान इस खेती को अपना रहे हैं. आत्मा प्रोजेक्ट सोलन के डायरेक्टर कृष्ण सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा समय-समय पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रशिक्षण और किसानों का पंजीकरण किया जा रहा है. मिट्टी को उपजाऊ बनाने और खेती को जहर मुक्त करने के लिए सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.

सोलन में 1394 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती.

'कम लागत में ज्यादा मुनाफा': आत्मा प्रोजेक्ट सोलन के डायरेक्टर कृष्ण सिंह ने बताया कि जहां प्राकृतिक खेती से आमजन को रसायन मुक्त उत्पाद प्राप्त होगा. वहीं, खेती की लागत कम होने से किसानों की आय में भी वृद्धि होगी. कृष्ण सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती में प्राकृतिक खाद, पेड़-पौधों के पत्‍ते से बनी खाद, गोबर खाद और जैविक कीटनाशक ही इस्‍तेमाल किए जाते हैं. इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है और साथ ही प्राकृतिक खेती में किसानों की लागत भी कम आती है.

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