सोलन: मशरूम रिसर्च व सोलन शहर के योगदान इसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में डीएमआर के प्रयासों को देखते हुए 10 सितंबर 1997 को भारतीय मशरूम सम्मेलन के दौरान हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसे भारत की मशहूर सिटी घोषित किया गया था. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वाधान में छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान 1983 में राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान व प्रशिक्षण केंद्र सोलन में बाद में मशरूम के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र के रूप में बदला गया.
सोलन में अपने मुख्यालय के साथ पांच राज्यों के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय में 6 केंद्रों पर मशरूम सुधार परियोजना का समन्वय किया गया. मशरूम केंद्र का उद्घाटन 21 जून 1987 को तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री युवा आईसीएआर सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ गुरुदयाल सिंह ढिल्लों ने किया था. इसे 26 दिसंबर 2008 को मशरूम अनुसंधान निदेशालय में अपग्रेड किया गया था. सोलन के चंबाघाट स्थित मशरूम अनुसंधान निदेशालय में 10 सितंबर को राष्ट्रीय मशरूम मेले का आयोजन भी किया जाता है.
वर्तमान में ऑल इंडिया को ऑडी नेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन मशरूम द्वारा सर्वेक्षण करने नई किस्म के मशरूम एकत्रित करने अनुकूल क्षमता की जांच करने के लिए देश के स्पाइस राज्यों में डीएमआर सोलंकी विकसित तकनीकों को परीक्षण करने व अन्य कार्यों के लिए 23 समन्वय और 9 सहकारी केंद्र है.
ई-लर्निंग पोर्टल से ले सकते हैं मशरूम की जानकारी
देश भर के लोगों को अपनी भाषा में मशरूम उत्पादन की जानकारी देने के लिए मशरूम सिटी ऑफ इंडिया सोलंकी 22वीं वर्षगांठ पर मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन ने ई-लर्निंग पोर्टल की शुरुआत भी की, जिससे देश विदेश की करीब 104 भाषाओं में मशरूम के बारे में किसानों और लोगों को जानकारी मिल सकती है.
पूरे साल किसान मशरूम उगा कर सकते हैं कमाई
मशरूम अनुसंधान केंद्र सोलन के डायरेक्टर डॉ बी पी शर्मा का कहना है कि किसान मशरूम की खेती कर पूरे साल उससे मोटी कमाई कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि मशरूम की प्रजाति करीब 45 दिनों में तैयार हो जाती है ऐसे में इस कारोबार से जुड़कर किसान साल भर कमा सकते हैं.
मशरूम से बनाये जा रहे हैं प्रोडक्ट