सोलन: देवभूमि हिमाचल को जहां अपनी मनभावन संस्कृति के लिए जाना जाता है वहीं, प्रदेश के हर जिले में ऐसे पारम्परिक व्यंजन बनाए जाते हैं जो देश-विदेश में अत्यंत लोकप्रिय हैं. हिमाचली व्यंजनों की यह परम्परा व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए पूर्ण आहार है.
वर्षों से पोषित हो रही व्यंजनों की यह परिपाटी निजीकरण एवं वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में स्वरोजगार का बेहतर साधन भी है. ऐसा ही एक पारम्परिक व्यंजन है सोलन जिला का 'कचोल या कचोल्टू'. इस व्यंजन को मक्की से तैयार किया जाता है.
सोलन जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कचोल को बड़े चाव के साथ खाया जाता है. कचोल को प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का बीड़ा उठाया है सोलन की रहने वाली युवा उद्यमी प्रीति कश्यप ने और उनके इस सपने को साकार करने में सहायक बनी है 'मुख्यमंत्री स्टार्ट अप योजना’.
प्रीति कश्यप का कहना है कि वह एक वुमन एंटरप्रेन्योरल और स्टार्टअप योजना के तहत वो हेल्दी फूड ट्रेजर कंपनी मैं कार्य कर रही हैं. उन्होंने कहा कि इस कंपनी का उद्देश्य है कि अपनी सांस्कृतिक व्यंजनों को बेहतर बनाया जाए और उसे बेहतर बनाकर मार्केट में उतारा जाए, ताकि लोग हिमाचल के सांस्कृतिक और पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चख सकें.
प्रीति कश्यप का कहना है कि जब उनकी बेटी का जन्म हुआ तो उन्हें लगा कि उन्हें अपनी बेटी के लिए एक रोल मॉडल बनना चाहिए इसके लिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना आत्मनिर्भर बना जाए और कुछ ऐसा किया जाए जिससे उनकी बेटी उन पर गर्व महसूस करें। उन्होंने कहा कि इसी के चलते उन्होंने स्टार्टअप योजना के तहत काम करना शुरू किया और उन्हे सफलता भी मिली है, उन्होंने कहा कि अभी भी भी वे अन्य विषयों पर कार्य कर रही है।
● पूर्वजों की निशानी है सांस्कृतिक व्यंजन की देन
प्रीति कश्यप का कहना है कि सांस्कृतिक व्यंजन हमारे पूर्वजों की निशानी हैं. प्रीति कश्यप बताती है कि उनकी दादी मां और नानी मां पहले से ही सांस्कृतिक व्यंजनों को घर में बनाया करती थी जिसे देख देखकर उन्होंने उनसे खाना बनाना सीखा है, उन्होंने कहा कि उन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए उन्हें यह आइडिया आया कि वह अपनी पुरानी सभ्यता को कायम रख सकती है.
उन्होंने कहा कि कचोलटू हिमाचल प्रदेश में एक सांस्कृतिक व्यंजन है जिसे लोग बड़े ही चाव से खाते हैं. उन्होंने बताया कि यह पारंपरिक पकवान ताजा मक्के के दानों को पीसकर अक्सर बेयोल के पत्तों पर स्टीम कर तैयार किया जाता है और इसे घी के साथ परोसा जाता था.
● शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए नौणी विश्वविद्यालय में किया गया कार्य