पांवटा साहिब: प्राकृतिक खेती किसानों और खेतों दोनों को नया जीवन दे रही है. पढ़े-लिखे युवा खेती के इस प्राचीन तरीके को अपनाकर स्वरोजगार के तौर पर अपना रहे हैं. सिरमौर जिला के पांवटा साहिब उपमंडल के तहत आने वाले शिलाई क्षेत्र में युवाओं ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है, जिससे उनकी उपज और आमदनी दोनों में बढ़ोतरी हुई है.
यह युवा खुद प्राकृतिक तरीके से खाद बना कर खेती कर रहे हैं. दो प्रकार से खाद तैयार कर यह लोग प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. एक गोमूत्र की खाद और दूसरी केंचुए की खाद. केंचुए की खाद बनाने के लिए 10 से 15 दिन पुराना गोबर इकट्ठा कर एक टैंक या फिर गड्ढे में डाल कर उसमें केंचुए डाले जाते हैं. इस तरीके से तीन से चार महीने में खाद तैयार हो जाती है.
दूसरा तरीका गोमूत्र से खाद या कीटनाशक बनाने का है. इसके लिए 10 किलोग्राम गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, एक किलो बेसन, एक किलोग्राम पीपल के पेड़ की मिट्टी और एक किलो गुड़ डालकर दो क्विंटल के एक ड्रम में पानी डालकर तैयार किया जाता है.
दोनों प्रकार की खाद के फायदे
केंचुए से बनी खाद का फायदा यह है कि इससे जमीन नरम होती है और पौधों की पैदावार भी सही ढंग से होती है. इसके अलावा गोमूत्र वाली खाद का फायदा यह है कि इसे पौधों पर छिड़कने से फसल में कोई रोग नहीं लगता और रोग लगी हुई फसल भी ठीक हो जाती है.
हरिपुर क्षेत्र के आशु ने दिखाई प्राकृतिक खेती की राह
हरिपुर क्षेत्र के आशु कुमार ने पांच साल पहले प्राकृतिक खेती को लेकर एक योजना शुरू की थी, जिससे गांव के दर्जनों युवाओं ना सिर्फ रोजगार मिला बल्कि गांव की बंजर पड़ी भूमि पर सब्जियां उगाई गई. जो जमीन कभी बंजर थी वहां आज गेंहूं और धान की बंपर पैदावार होती है.
हरिपुर के युवाओं ने खेतों में गोमूत्र खाद के छिड़काव के लिए खास तरह के प्रबंध किए हुए हैं. गांव की सभी गोशालाओं को पक्का किया गया है और उसमें से गोमूत्र को एक नाली के जरिए एक गड्ढे में एकत्रित किया जाता है, ताकि बाद में खाद बनाकर उसका छिड़काव खेतों में किया जा सके.