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गुम होते घराट: बेरोजगारी की मार झेल रहे संचालकों की गुहार, कुछ तो करो सरकार - ग्रामीण इलाकों में बिजली चक्की

गिरीपार क्षेत्र की पारंपरिक घराट संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. हालांकि एक जमाना ऐसा भी था जब बिजली और सड़क के अभाव में इलाके के 95 फीसदी से ज्यादा लोग घराटों के आटे का ही इस्तेमाल करते थे, लेकिन जब गांव में बिजली पहुंचनी शुरू हुई तो लोगों ने बिजली से चलने वाली चक्कियों को लगाना शुरू कर दिया.

Traditional gharat

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Published : Oct 11, 2019, 12:23 PM IST

Updated : Oct 12, 2019, 11:34 PM IST

पांवटा साहिब: कुछ साल पहले तक जिला सिरमौर में सैकड़ों घराट नजर आते थे लेकिन आज के समय में लगभग इक्का-दुक्का घराट ही नजर आते हैं. पूरे प्रदेश में जहां कुछ साल पूर्व घराटों का प्रचलन था, वहीं आज के समय में नदियों और नाले में पानी का स्तर कम होने के कारण लोगों के पास समय के अनुभव के चलते इन घराटों का अस्तित्व नहीं के बराबर रह गया है.

जिला सिरमौर के ट्रांस नदी के साथ-साथ उत्तराखंड के ऊपरी क्षेत्र में करीब सैकड़ों घराट थे. पहले ग्रामीण इलाकों में बिजली चक्की ना होने कारण लोग गेहूं, मक्की पिसाने के लिए घराट पर आते थे. लेकिन समय के अभाव के कारण लोग चक्की में ही अनाज पिसा लेते हैं. ऐसे में घराट से आमदनी न होने के कारण संचालकों का जीवन गुजर-बसर करना मुश्किल हो गया है.

वीडियो रिपोर्ट

घराट संचालक आज भी केंद्र और हिमाचल प्रदेश सरकार की नई योजनाओं के साथ-साथ अपनी बंद पड़ी योजना को भी शुरू करने के आस में जुटे हैं ताकि उन्हें आने वाले समय में रोजगार मिल सके. स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर सरकार दोबारा से घराटों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करे तो लोगों के लिए अच्छा आटा उपलब्ध हो सकता है. साथ ही साथ घराट संचालकों को रोजगार का साधन भी मिल सकता है.

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Last Updated : Oct 12, 2019, 11:34 PM IST

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