पांवटाः 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से पूरा देश शोक में डूब गया. नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी. गोडसे ने बेहद करीब से गांधी जी की छाती पर तीन गोलियां मारी, जिससे राष्ट्रपिता का निधन हो गया.
1951-52 में गांधी मंदिर बनाने की मुहिम हुई शुरू
गोडसे गांधी जी को गोली मार उनकी सांस रोकने में तो सफल रहा, लेकिन गांधी जी केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि खुद में एक विशाल संस्था थे. यही वजह है कि उनके सोच और विचार आज तक जीवित हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देश भर में गांधी जी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई.
सिरमौर के अंबोया में राष्ट्रपिता का मंदिर
इस मुहिम के तहत जिला सिरमौर के अंबोया गांव में गांधी जी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं. महात्मा गांधी के मंदिर के आसपास रहने वाले लोग बापू को भगवान से कम नहीं मानते.
यही कारण है कि इस मंदिर में रोजाना गांधी जी की पूजा की जाती है. साल में 2 दिन विशेष रूप से गांधी जी को याद किया जाता है. पिछले कई दशकों से यहां इस दिन मेले का भी आयोजन होता है, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मेला आयोजित नहीं हो सका.
नेताओं से खफा ग्रामीण
अंबोया गांव के लोग प्रदेश के नेताओं से भी खासे खफा हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नेता गांधीजी के नाम पर राजनीति तो करते हैं, लेकिन वह कभी इस मंदिर में नहीं आते. सरकार की अनदेखी के कारण मंदिर को पहचान नहीं मिल सकी है. गांव के लोग चाहते हैं कि यहां नेता और प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर आते रहें, ताकि इस मंदिर की ओर भी ध्यान दिया जा सके.
टीन का शेड डालकर हुई थी मंदिर की शुरुआत