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ये हैं हिमाचल के 'ग्रीन मैन', दुनिया छोड़ने से पहले उतार गए धरती का कर्ज

वन विभाग में छोटे से पद पर तैनात फॉरेस्ट गार्ड घनानंद आज बेशक हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्य को लोग आज भी याद करते हैं. सिरमौर के मातर गांव से ताल्लुक रखने वाले स्व. घनानंद को ग्रीन मैन भी कहा जाता है.

late forest guard Ghananand

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Published : Jun 5, 2019, 1:06 PM IST

नाहनः जिला सिरमौर का शख्स संसार छोड़ने से पहले धरती मां का कर्ज उतार गया. ऐसा हम इसलिए कह रहें हैं क्ंयोकि एक शख्स की मेहनत से आज करीब 10 हजार पेड़ों का जंगल फलफूल रहा है. वन विभाग में छोटे से पद पर तैनात फॉरेस्ट गार्ड घनानंद आज बेशक हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्य को लोग आज भी याद करते हैं.

स्व. घनानंद

सिरमौर के मातर गांव से ताल्लुक रखने वाले स्व. घनानंद को एक प्रेरणा स्त्रोत्र के रूप में याद किया जाना आवश्यक है. घनानंद को ग्रीन मैन भी कहा जाता है. बता दें कि घनानंद शर्मा नाहन वन डिवीजन के अंतर्गत बनकला बीट में बतौर फॉरेस्ट गार्ड तैनात थे. करीब 10 किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में फैली इस बीट का ज्यादातर क्षेत्र श्री मारकंडा नदी और शंभूवाला से आगे की नेशनल हाइवे का एरिया लगता था, ये क्षेत्र बरसात में भूमि कटाव के साथ साथ हरियाली मुक्त था.

1995-96 में ड्यूटी के दौरान घनानंद ने इस पूरे क्षेत्र में पेड़ लगाने शुरू कर दिए. उन्होंने इस बीच जो सबसे बड़ा ग्रीन पैच तैयार किया, वह मारकंडा नदी व पटवास नदी का डेल्टा क्षेत्र था.

स्व. घनानंद द्धारा लगाए गए पेड़
बियाबान पत्रों और बंजर इस नदी के क्षेत्र में करीब 8 हेक्टेयर जगह पर घनानंद ने शीशम के पेड़ों की प्लांटेशन की थी. 10 हजार से अधिक शीशम के बेशकीमी पेड़ लगाए और उनका पोषण भी छोटे बच्चों की तरह किया.

इसी का नतीजा हा कि आज मारकंडा नदी का यह क्षेत्र एक बड़ा हरे-भरे जंगल के रूप में तैयार हो गया है. वन विभाग के बड़े अधिकारी भी इस क्षेत्र को देखकर हैरान रह जाते हैं. स्व. घनानंद के प्रयासों से न केवल पर्यावरण का संरक्षण हुआ है, बल्कि स्थानीय किसानों की सैकड़ों बीघा जमीन भूमि कटाव से बची है.

स्व. घनानंद के बेटे तिलक राज शर्मा ने बताया कि उनके पिता छुट्टी के दिन भी प्लांटेशन में ही रहा करते थे. उन्हें स्वास्थ्य का हवाला देकर जबरन घर लाया जाता था. लगातार बिगड़ती तबीयत और स्वास्थ्य कारणों के चलते सरकार ने उनकी सेवाओं से संतुष्ट होकर उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी और उनकी जगह उनके बेटे को वन विभाग में उनके कार्यों को देखते हुए करुणामूलक आधार पर नौकरी दी.

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